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________________ 388888881 42 / सूक्तरत्नावली mam निर्मलानां सुवृत्ताना, संगः प्रोच्चै:पदप्रदः । मौक्तिकर्मिलिताः स्त्रीणां, हृदि तिष्ठन्ति तन्तवः ।।128 ।। ___ निर्मल सवृत्ति वाले व्यक्ति का संग उच्च पद प्रदान करता है। मोतियों के संग तन्तु (धागा) भी स्त्री के हृदय पर शोभित होता है। तदेव दत्ते दाताऽपि, यद् भाले लिखितं भवेत्। त्रिपत्र्येव पलाशेऽभूद, वर्षत्यपि पयोधरे।। 129 ।। दाता के देने पर भी जो भाग्य में लिखा हुआ है वही मिलता है। बादल के बरसने पर भी ढ़ाँक का वृक्ष पत्तों से रहित होता है। हित्वा बलं कुलं शीलं, पक्ष्मलक्ष्मीमुपास्महे । फलं तरुस्थं सत्पक्षः, काकोऽत्ति न च केशरी।।130 ।। हम बल, कुल एवं शील का विचार न करते हुए शोभन भ्रू वाली वनिताओं की उपासना करते हैं (सेवन करते हैं)। पंखवाला होने पर भी कौआ वृक्ष पर स्थित फल खाता है परन्तु सिंह नहीं खाता है (वह तो अपने पौरुष से शिकार करके ही उसे खाता है)। वित्त विनो पद्रवाय, स्वमित्रमपि जायते । नीरं विना विनाशाय, न किं सूरः सरोरुहाम्?||131।। धन के बिना स्वयं के मित्र भी उपद्रव के लिए तैयार हो जाते है। क्या पानी के बिना सूर्य कमल के नाश के लिए उद्यत् नहीं होता? सहाये सति सोत्कर्षा, शक्तिस्तेजस्विनामपि। यदग्नेर्दीप्यते दीप्ति,-र्जवने पवने सति।।132|| सहायक के होने पर तेजस्वी व्यक्तियों की शक्ति उत्कर्ष को प्राप्त करती है। अग्नि जलने पर ज्वाला पवन के सहयोग से उग्र हो जाती है। 683088888888888888ONGEBOB888888888RISIO8888888888888888888880000868800388888888888888888888888888860000000000000000000000000000000000000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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