________________
30 / सूक्तरत्नावली
तेजस्वी व्यक्ति के तेज का नाश होने पर अन्य व्यक्तियों का उदय होता है। सूर्य का तेज खत्म होने पर (अस्त होने पर) क्या चन्द्र का उदय नहीं होता है ? पात्रे शुद्धात्मने वित्तं, दत्तं स्वल्पमपि श्रिये । दत्ते स्निग्धानि दुग्धानि, यद् गवां चारितं तृणम् ।।6911
सुपात्र मे दिया गया थोड़ा दान भी शुद्ध आत्मा के लिए कल्याणकारी होता है। गाय चारा खाकर भी घी और दूध देती है।
स्वल्पसत्त्वेष्वपि स्वेषु, वृद्धिः सत्स्वेव निश्चितम्। उद्गमो यज्जनैर्दृष्टः, सतुषेष्वेव शालिषु।। 70।।
स्वयं में रहा हुआ अल्प सत्व भी निश्चित ही स्वयं की सज्जनता की वृद्धि करता है। तुष में रहा हुआ शालि (चावल) वृद्धि को प्राप्त करते हुए देखा जाता है। सिद्धिं सृजन्ति कार्याणां, स्मितास्या एव साक्षराः । लेखा उन्मुद्रिता एव, जायन्ते कार्यकारिणः।। 71||
प्रसन्न मुख एवं विद्वान व्यक्ति ही कार्यों की सिद्धि (सफलता) का सृजन करते हैं। अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर युक्त अभिलेख ही सार्थक माने जाते हैं।
उपकारः सतां स्थान,-विशेषाद् गुणदोषकृत्। लोके घूके रवेर्भास,-स्तेजसे चाऽप्यतेजसे।। 72|| __सज्जन व्यक्तियों द्वारा किया गया उपकार स्थान (पात्र) विशेष से गुण और दोष बन जाता है। जैसे सूर्य का प्रकाश संसार में प्रकाश करने वाला होता है और उल्लू के लिए अंधकार हो जाता है।
भवन्ति महतां प्रायः, संपदो न विनापदम् । पत्रपातं विना किं स्याद, भूरुहां पल्लवोद्गमः? ||73।।
000000000000000000000000000000000BSORBSCRB00000NORNON80880030038
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org