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सूक्तरत्नावली / 31
प्रायः महान् व्यक्तियों को भी बिना आपत्ति के सम्पदा नहीं मिलती है। क्या वृक्षों में पत्रपतन बिना (बिना पत्ते गिरे) पुनः नये पतों का आगम होता है। अर्थात् नहीं होता है। महदभ्यः खेदितेभ्योऽपि, प्रादुर्भवति सौहृदम् । प्रादुरासीन्न कि सर्पि,-मथितादपि गोरसात्? |174||
दुखित होते हुए भी महान् व्यक्तियों से मित्रता का ही जन्म होता है। क्या दूध (दहि) को मथने से भी घी उत्पन्न नहीं होता है। अर्थात् होता है।
नाशं कर्तुमलं वीरा, न तज्जातिं विना द्विषाम्। छिद्यन्ते पशुभिवृक्षा, न विना दारुहस्तकम्।। 75 ।।
शत्रुओं का नाश करने के लिए वीर पुरुष समर्थ होते है किंतु शत्रुओं के बिना उनका जन्म नहीं होता है। बिना लकड़ी के हत्थे की कुल्हाड़ी से वृक्ष नहीं काटे जाते हैं। दत्ते ह्यनर्थमत्यर्थ, कुपात्रे निहितं धनम् । किं वृद्धये विषस्यासी, न्नाऽहीनां पायितं पयः? || 76 ||
कुपात्र मे दिया गया धन भविष्य के लिए अनर्थकारी होता है। क्या साँपों को दूध पिलाने से विष की वृद्धि नहीं होती है ?
शिष्टे वस्तुनि दुष्टस्य, मतिः स्यात् पापगामिनी। कलावतीन्दौ मिलिते, राहुरत्तुमना अभूत्।। 77 ||
दुष्ट व्यक्ति की बुद्धि शिष्टवस्तु पर भी पाप वाली होती है। कलावान् चन्द्रमाँ का साथ मिल जाने पर भी राहु की प्रकृति ग्रसण की ही रही। भवन्त्यवसरे तुंगा, नीरसेऽपि रसोत्तमाः । यद् ग्रीष्मौ सुभीष्मेऽपि, रसाला रसशालिनः।। 78||
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