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16 / सूक्तरत्नावलीmonsoons
सूक्तरत्नावली
विबुधानन्दजननी, गुरोर्वाचमुपास्महे । या रसेव रसै रम्या, मंगलोत्सवकारिणी ।। 1।।
विद्वानों को आनंद प्रदान करने वाली गुरुदेव की वाणी की हम उपासना करते है। पृथ्वी के समान अनेक रसो से युक्त वह वाणी सुंदर और मंगलमय आनन्दोत्सव कराने वाली है। वचो भिर्नी तिनिष्यन्द,-कन्द कादम्बिनीनिभैः। दद्मो व्याख्याजुषां शिक्षा, मुखाम्भोजरवित्विषम् ।।2।
जिनका मुख कमल सूर्य की कान्ति के सामन है और जिनके नीति से युक्त वचन अमृत जल की वर्षा करने वाले बादलों के समूह के समान है उन वचनों द्वारा व्याख्याकारों की शिक्षा को हम प्रदान करते हैं। भावसारस्ययुक्तानि, सूक्तानि प्रतिकुर्महे । रविपादैरिवाम्भोजं, यैः सभोल्लासभाग् भवेत् ।। 3 ।।
यहाँ प्रत्येक युक्ति भावपूर्ण एवं सार से युक्त बनाई गई है। जैसे सूर्य की किरणों से कमल का विकास होता है। उसी तरह इन सूक्तियों से सभा भी उल्लास की अधिकारिणी होगी। विनेन्दु ने व रजनी, वाणी श्रवणहारिणी । दृष्टान्तेन विना स्वान्ते, विस्मयं वितनोति न ।। 4।। कर्ण को आकृष्ट करने वाली वाणी भी दृष्टान्त के बिना
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