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________________ Monoa सूक्तरत्नावली / 15 बताया है। ऐसा लगता है कि उनके पशचात् भी इस कृति में कुछ श्लोक जोड़ दिये गये हैं कृतिकार अपनी रचना को ‘पाँच सौवें श्लोक में समाप्त करता है, उसके पश्चात् के 11 श्लोक अन्य किसी ने उसमें जोड़े होंगे ऐसा लगता है। विजयसेन सूरि तपागच्छ की विमलशाखा से सम्बन्धित थे, सूक्तरत्नावली के अलावा उनकी अन्य कौन-सी रचनाएँ थीं, इस सम्बन्ध में हमें कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। फिर भी इस कृति के आध गार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वे एक विद्वान् आचार्य रहे हैं, उनकी विद्वता के कारण ही सम्राट अकबर ने उन्हें मान दिया था। इस प्रकार एक श्रेष्ठ विद्वान् की श्रेषकृति के अनुवादपूर्वक प्रकाशन का यह जो अनुमोदनीय कार्य हुआ है, उस हेतु मैं साध्वी रुचिदर्शनाश्रीजी को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। - डॉ. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म.प्र.) छठJ00000000000000066000000000006600 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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