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________________ Jain Education International श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि नगराज जी डॉ० सागरमल जैन श्री राजाराम जैन मुनि दुलहराज आचार्य आनन्द ऋषि डॉ० सागरमल जैन ३३ ४६ अंक ११ १-३ ४ १६ ई० सन् १९८२ १९९५ १९५३ १९६५ १९८३ १९९५ १९८१ १९८३ १९८८ पृष्ठ ६-९ ६९-८६ २८-२९ ११-१५ ११-१२ १३४-१४९ २२-२७ ९-१३ १२-१७ ३४ ४६ ३८८ लेख संवत्सरी महापर्व : स्वरूप और अपेक्षाएं सकारात्मक अहिंसा की भूमिका सच्ची साधना का प्रभाव सचेल-अचेल सदाचार का महत्त्व सदाचार के शाश्वत मानदण्ड सदाचार-मानदण्ड और जैनधर्म समाधिमरण समाधिमरण का स्वरूप समाधिमरण की अवधारणा: उत्तराध्ययनसूत्र के परिप्रेक्ष्य में समाधिमरण की अवधारणा की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समीक्षा साधना की अमर ज्योति साधना में श्रद्धा का स्थान साधु मर्यादा क्या ? कितनी ? साधु समाज और निवृत्ति साधुओं का शिथिलाचार सामायिक का मूल्य ३४ For Private & Personal Use Only श्री गणेशप्रसाद जैन श्री रज्जन कुमार 30 १९८७ १३-१८ डॉ० सागरमल जैन मुनि समदर्शी आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी श्री सौभाग्यमल जैन पं० दलसुख मालवणिया । श्री सौभाग्यमल जैन उपाध्याय श्री अमरमुनि WWW ४२ ४-६ १४ ५ ३१ ३३ ७ ३२ १५ ३ ३१ ५ १९९१ १९६३ १९८० १९८२ १९५१ १९६४ १९८० ९९-१०१ ४१-४७ १२-१८ १५-१८ ९-१२ ९-१३ ६-८ www.jainelibrary.org
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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