SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौमुदी अपरनाम श्राद्धविधि ग्रंथ में कह्यो छे कि प्रथम मनुष्यभवादिक सामग्री पामी निरन्तर धर्मकरणी करवी । निरन्तर न बने तेने तिथि के दिन धर्मकरणी करवी । यदुक्तं जइ सव्वेसु दिनेसुं पालह किरियं तउ हवइ लटुं जय पुण तहा न सक्कह तह वि हु पालिज्ज पव्वदिणं ।।१।। एक पखवाडा में तिथि छ होवे यदुक्तं बीआ पंचमी अष्टमी ग्यारसी चौदसि पण तिहिउं एआउ सुअतिहीउं गोअमगणहारिणा भणिआ ।।१।। एवं पंचपर्वी पूर्णिमामाषास्याभ्यां सह षट्पर्वी च प्रतिपक्षमुत्कृष्टतः स्यात् तिथी पीण जे प्रभाते पचखाणवेलाये उदियात होवे । सो लेणी। यदुक्तं तिथीश्च प्रातः प्रत्याख्यानवेलायां य: स्यात्स प्रमाणं सूर्योदयानुसारेणैव लोकेपि दिवसादिव्यवहारात् आहुरपि चाउम्मासिअवरिसे पखिअ पंचट्ठमीसु नायव्वा । ताउ तिहीउ जासिं उदेइ सूरो न अणाउ ।।१।। पूआ पच्चक्खाणं पडिकमणं तहय निअमगहणं च जीए उदेइ सूरो तीइ तिहीए उ कायव्वं ।।२।। जो तिथीनो क्षय होवे तो पूर्वतिथी में करणी जो वृद्धि होवे तो उत्तरतिथी लेणी । यदुक्तं - क्षये पूर्वा तिथिः कार्या वृद्धौ कार्या तथोत्तरा श्री वीर ज्ञान निर्वाण कार्य लोकानुगैरिह ।।१।। जो उदियात तिथि को छोडकर आगे पीछे तिथि करे तो तीर्थंकर की आणनो भंग-१ अनवस्था एटले मरजादानो भंग-२ मिथ्यात्व एतले समकित को नास-३ वीराधक-४ ये चार दूषण होवें। यदुक्तं उदयंमि जा तिही सा पमाणमिअरीइ कीरमाणीए आणाभंगणवत्था मिछत्त विराहणं पावे-१ और श्री हीरप्रश्न में पिण कह्या है कि जो पर्युषणा का पिछला चार दिवस में तिथि का क्षय आवे तो चतुर्दशीथी कल्पसूत्र वांचणा । जो वृद्धि आवे तो एकमथी वाचणा। एथी पिण मालम हुवा कि जेम तिथि की हानि वृद्धि आवे ते तेमज करणी वास्ते अबके पर्युषण में एकम दूज भेली करणी बद ११ शनिवारे प्रारंभ बद १४ मंगलवारे पाखी तथा कल्पसूत्र की वाचना, पिण सोमवारे पाखी करणी नहीं । वद ३० अमावास्याये जन्मोत्सवः सुद-४ शनिवारे संवत्सरि करणी । कोई कहै छै कि बडा कल्प की छट्ठ की तपस्या तूटे तथा संबत्सरि पहिला पांचमे दिवसे पाखी करणी वास्ते पर्युषण का पिछला चार दिवस में तिथि की हानि वृद्धि आवे तो बारस तेरस भेगा करां छां वा दो तेरस करां छां इसका उत्तर ये बात कोई शास्त्र में लिखी नथी और चौबीस की साल में दूज टूटी तिस की साल में दो चौथ हुई । ते वखते श्री अमदाबाद वगेरह प्राये सर्व शहरों में साधु-साध्वी श्रावक-श्राविकायें बारस तेरस --જન્મપર્વતિથિ ક્ષચવૃદ્ધિ અંગે સરળ અને શાસ્ત્રીય સમાજ+--- ----- ૮૧ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001751
Book TitleParvatithi Kshay Vruddhi Ange Saral ane Shastriya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaddharm Samrakshak Samiti Mumbai
PublisherSadDharm Samrakshak Samiti Mumbai
Publication Year
Total Pages116
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tithi, Principle, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy