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________________ भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक ६७ नवमी को श्रवण नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये। आपके धर्म परिवार में १८ गणधर, १८०० केवली, १५०० मन: पर्यवज्ञानी, १८०० अवधिज्ञानी, ५०० चौदह पूर्वधारी, २००० वैक्रियलब्धिधारी, १२०० वादी, ३००००० साधु, ५०००० साध्वी, १७२००० श्रावक एवं ३५०००० श्राविकायें थी। भगवान् नमिनाथ (इक्कीसवें तीर्थंकर) नमिनाथ का जन्म मिथिला में हआ। मनि सिद्धार्थ का जीव अनत्तर स्वर्गलोक के अपराजित विमान से च्युत होकर मिथिला के राजा विजयसेन की महारानी वप्रा के गर्भ में आश्विन पूर्णिमा को अश्विनी नक्षत्र में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर श्रावण कृष्णा अष्टमी को अश्विनी नक्षत्र में महारानी ने पुत्र को जन्म दिया । ऐसी मान्यता है कि गर्भकाल में शत्रुओं ने मिथिला नगरी को चारों ओर से घेर लिया था। महारानी वा ने राजमहल की छत से सौम्यदृष्टि से जब शत्रुओं की ओर देखा तो शत्रुओं का हृदय नमित हो गया और वे विजयसेन के समक्ष नतमस्तक हो गये, इसी कारण से बालक का नामकरण नमिनाथ किया गया । वैवाहिक जीवन व राजपद का त्यागकर आपने आषाढ़ कृष्णा नवमी को अश्विनी नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की । नौ मास की कठिन तपस्या के पश्चात् मिथिला के चित्रवन में बकुल वृक्ष के नीचे मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को अश्विनी नक्षत्र में ही आपको कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्णा दशमी को अश्विनी नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप मोक्ष को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में १७ गणधर, १६०० केवली, १२५० मन:पर्यवज्ञानी, १६०० अवधिज्ञानी, ४५० चौदह पूर्वधारी, ५००० वैक्रियलब्धिधारी, १००० वादी, २०००० साधु, ४१००० साध्वी, १७०००० श्रावक व ३४८०००० श्राविकायें थीं। ___मध्यवर्ती इन बीस तीर्थंकरों के विषय में हमें सर्वप्रथम सूचनायें 'समवायांग' के परिशिष्ट में उपलब्ध होती हैं। कल्पसूत्र में जहाँ पश्चानुक्रम से महावीर, पार्श्व अरिष्टनेमि और ऋषभ के जीवनवृत्त उल्लेखित हैं वहाँ ऋषभ और अरिष्टनेमि के मध्य के बीस तीर्थंकरों के मात्र अन्तर काल का ही उल्लेख है। परम्परागत मान्यतानुसार उसमें जो कालक्रम दिया गया है उससे इतिहासकार सहमत नहीं होते हैं। किन्तु भगवान् ऋषभ और अरिष्टनेमि के मध्यवर्ती बीस तीर्थंकर पूर्णत: पौराणिक भी नहीं कहें जा सकते हैं क्योंकि उनमें से बहुत के नाम हिन्दू और बौद्ध परम्परा के धर्मग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। मिथिला के नमि का उल्लेख बौद्ध एवं जैन साहित्य में प्रत्येकबुद्ध के रूप में भी हमें उपलब्ध होता है। महाभारत में भी नमि का कथानक उपलब्ध होता है। अत: मध्यवर्ती बीस तीर्थंकरों को मात्र पौराणिक नहीं कहा जा सकता है। अजित, सुव्रत, अर आदि के उल्लेख अन्य परम्पराओं में भी हैं, इनकी ऐतिहासिकता को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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