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________________ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास सहस्राम्रवन में आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को सम्मेतशिखर पर आप मोक्ष को प्राप्त हुये। आपके धर्म परिवार में ३३ गणधर २८०० केवली, २५५१ मन: पर्यवज्ञानी, २६०० अवधिज्ञानी, ६१० चौदह पूर्वधारी, ७३०० वैक्रियलब्धिधारी, १६०० वादी, ५०००० साधु, ६०००० साध्वी, १८४००० श्रावक और ३७२००० श्राविकायें थीं। भगवान् मल्लिनाथ (उन्नीसवें तीर्थंकर) मल्लिनाथ का जन्म मिथिला में हुआ। मुनि महाबल का जीव अनुत्तर देवलोक के वैजयन्त विमान से च्युत होकर फाल्गुन शुक्ला चतुर्थी को अश्विनी नक्षत्र में मिथिला के राजा कुम्भ की महारानी प्रभावती के गर्भ में अवतरित हुआ । समय पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को अश्विनी नक्षश्र में महारानी ने एक अनुपम सुन्दर कन्या को जन्म दिया । गर्भकाल में माता को पुष्प शय्या का दोहद हुआ । शय्या पर मालती पुष्पों की अधिकता थी, अत: कन्या का नामकरण मल्लीकमारी रखा गया। मार्गशीर्ष शुक्ला को अश्विनी नक्षत्र में आपने दीक्षा ग्रहण की। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन आपने दीक्षा ग्रहण की थी उसी दिन अशोक वृक्ष के नीचे आपको कैवल्य की प्राप्ति हो गयी था। फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार मल्लि नारी तीर्थंकर थीं, जबकि दिगम्बर मान्यता के अनुसार मल्लि पुरुष तीर्थंकर थे। दिगम्बर परम्परा की इस मान्यता के पीछे स्त्री को मुक्ति या निर्वाण की अधिकारिणी न होना निहित है। श्वेताम्बर मान्यतानुसार मल्लि अविवाहित थीं।। आपके धर्म परिवार में २८ गणधर, २२०० केवली, १७५० मन: पर्यवज्ञानी, २२०० अवधिज्ञानी, ६६८ चौदह पूर्व लब्धिधारी, १४०० वादी, ४०००० साधु, २००० अनुत्तरौपपातिक मुनि, ५५००० साध्वी, १८३००० श्रावक व ३७०००० श्राविकायें थीं। भगवान् मुनिसुव्रत (बीसवें तीर्थंकर) आपका जन्म राजगृह में हुआ । मुनि सुरश्रेष्ठ का जीव प्राणत स्वर्ग से च्युत होकर श्रावण पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र में राजगृह के शासक सुमित्र की धर्मपत्नी महारानी पद्मावती के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर रानी ने श्रावण कृष्णा अष्टमी को श्रवण नक्षत्र में तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । गर्भकाल में माता ने सम्यक् प्रकार से व्रतों का पालन किया था, इस कारण से बालक का नाम सुव्रत रखा गया। वैवाहिक जीवन व राजपद का त्याग करके फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को श्रवण नक्षत्र में आपने दीक्षा ग्रहण की । एक वर्ष की कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को नीलवन के चम्पक वृक्ष के नीचे आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्णा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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