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भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक महारानी अचिरादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को भरणी नक्षत्र में महारानी ने पुत्र को जन्म दिया । जीव के गर्भ में आते ही चारों ओर फैली महामारी शान्त हो गयी, इस कारण बालक का नाम शान्तिनाथ रखा गया। वैवाहिक जीवन एवं चक्रवर्ती पद का भोगकर ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को हस्तिनापुर में आप दीक्षित हुये । एक वर्ष की कठिन तपस्या के उपरान्त हस्तिनापुर के सहस्राम्रवन में नन्दिवृक्ष के नीचे आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को भरणी नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हये।
आपके धर्म परिवार में ९० गणधर कहीं-कहीं ३६ का भी उल्लेख मिलता है, ४३०० केवली, ४००० मनःपर्यवज्ञानी, ३००० अवधिज्ञानी, ८०० चौदह पूर्वधारी, ६००० वैक्रियलब्धिधारी, २४०० वादी, ६२०००० साधु, ६१६०० साध्वी, २९००० श्रावक और ३९३००० श्राविकायें थीं । भगवान् कुन्थुनाथ (सत्रहवें तीर्थंकर)
कुन्थुनाथ का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ। मुनि सिंहावह का जीव सर्वार्थसिद्ध महाविमान से च्युत होकर श्रावण कृष्णा नवमी को कृत्तिका मक्षत्र में हस्तिनापुर के राजा सूरसेन की महारानी श्रीदेवी के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को कृत्तिका नक्षत्र में 'महारानी ने बालक को जन्म दिया। गर्भकाल में माता ने कुंथु नाम के रत्नों की राशि देखी थी, इसी कारण बालक का नाम कुंथुनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं चक्रवर्ती पद का त्याग कर आपने दीक्षा ग्रहण की। १६वर्षों की कठिन तपस्या के पश्चात् गजपुर (हस्तिनापुर) के सहस्राम्रवन में तिलकवृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ला तृतीया को आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्णा प्रतिपदा को कृत्तिका नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये।
आपके धर्म परिवार में ३५ गधधर, ३२०० केवली २५०० अवधिज्ञानी, ३३४० मन:पर्यवज्ञानी, ६७० चौदह पूर्वधारी, ५१०० वैक्रियलब्धिधारी, २००० वादी, ६०,००० साधु, ६०६०० साध्वी, १७९००० श्रावक और ३८१००० श्राविकायें थीं। भगवान् अरनाथ (अट्ठारहवें तीर्थंकर)
__आपका जन्म हस्तिनापुर में हुआ । मुनि धनपति का जीव ग्रैवेयक से च्युत होकर फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को रेवती नक्षत्र में हस्तिनापुर के राजा सुदर्शन की महारानी महादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भ की अवधि पूर्ण होने पर रानी ने मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को रेवती नक्षत्र में पुत्र को जन्म दिया। गर्भकाल में माता ने रत्नमय चक्र के अर को देखा था, अत: बालक का नाम अरनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं चक्रवर्ती पद का त्यागकर मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को आपने दीक्षा ग्रहण की। तीन वर्षों की कठिन तपस्या के पश्चात् कार्तिक शुक्ला द्वादशी को गजपुर (हस्तिनापुर) के
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