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________________ ६४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास ६८००० साधु, १००८०० साध्वी, २०८००० श्रावक व ४२४००० श्राविकायें थीं। भगवान् अनन्तनाथ (चौदहवें तीर्थंकर) अनन्तनाथ का जन्म अयोध्या में हुआ। पद्म का जीव श्रावण कृष्णा सप्तमी को दसवें स्वर्ग के महर्धिक देवविमान से च्युत होकर अयोध्या के महाराज सिंहसेन की महारानी सुयशा के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी ने वैशाख कृष्णा त्रयोदशी को बालक को जन्म दिया। 'त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र' में वर्णन है कि गर्भकाल में पिता ने भयंकर और अजेय शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी, इस कारण से बालक का नाम अनन्तनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन और राजपद का त्याग कर अनन्तनाथ ने वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को दीक्षा ग्रहण की। तीन वर्षों की तपस्या के उपरान्त अयोध्या के सहस्राम्रवन में अशोक वृक्ष के नीचे वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । चैत्र शुक्ला पंचमी को रेवती नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ५० गणधर, ५००० केवली, ५००० मनः पर्यवज्ञानी, ४३०० अवधिज्ञानी, ८००० वैक्रियलब्धिधारी, १००० चौदह पूर्वी, ३२०० वादी, ६६००० साधु, ६२००० साध्वी, २०६००० श्रावक एवं ४१४००० श्राविकायें थीं। भगवान् धर्मनाथ (पन्द्रहवें तीर्थंकर) धर्मनाथ का जन्म रत्नपुर में हुआ । दृढ़रथ का जीव वैजयन्त स्वर्ग के अनुत्तर विमान से च्युत होकर पुष्य नक्षत्र में वैशाख शुक्ला सप्तमी को रत्नपुर के राजा भानु की महारानी सुव्रता के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर माध शुक्ला तृतीया को महारानी ने बालक को जन्म दिया । गर्भकाल में महारानी को धर्माराधन का दोहद उत्पन्न हुआ, इस कारण बालक का नाम धर्मनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन व राजपद त्याग कर माध शुक्ला त्रयोदशी को रत्नपुर में ही आप दीक्षित हुये । दो वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् रत्नपुर के उद्यान में दधिपर्ण वृक्ष के नीचे पौष पूर्णिमा को आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को पुष्य नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ४३ गणधर ४५०० केवलज्ञानी, ४५०० मनः पर्यवज्ञानी, ३६०० अवधिज्ञानी, ७००० वैक्रियलब्धिधारी, ९००० चौदह पूर्वधारी, २८०० वादी, ६४००० साधु, ६२४०० साध्वी, २४०००० श्रावक और ४१३००० श्राविकायें थीं । भगवान् शान्तिनाथ (सोलहवें तीर्थंकर) 1 शान्तिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में हुआ । मेधरथ का जीव भाद्र कृष्णा षष्ठी को भरणी नक्षत्र में सर्वार्थसिद्ध महाविमान से च्युत होकर हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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