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________________ भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक ६३ राजपद का त्याग कर सहस्राम्रवन में अशोक वृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी को आप दीक्षित हुये । दो मास की तपस्या के पश्चात् सिंहपुरी के उद्यान में तिन्दुक या पलाश वृक्ष के नीचे माघ पूर्णिमा को आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । श्रावण कृष्णा त्रयोदशी को सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ७६ गणधर, ६५०० केवली, ६००० मन: पर्यवज्ञानी, ६००० अवधिज्ञानी, १३०० चौदह पूर्वधारी, ११००० वैक्रियलब्धिधारी, ५००० वादी, ८४००० साधु, १०३००० साध्वी, २७९००० श्रावक और ४४८००० श्राविकायें थीं। भगवान् वासुपूज्य (बारहवें तीर्थंकर) वासुपूज्य का जन्म चम्पानगरी में हुआ। चम्पानगरी के राजा वसुपूज्य आपके पिता व जया आपकी माता थीं। पदमोत्तर का जीव प्राणत स्वर्ग से च्युत होकर रानी जया के गर्भ में ज्येष्ठ शुक्ला नवमी को अवतरित हुआ । समय पूर्ण हो जाने पर फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी को रानी ने बालक को जन्म दिया । वसुपूज्य का पुत्र होने के कारण आपका नाम वासुपूज्य रखा गया । आपने न तो विवाह किया था और न ही राजपद को ग्रहण किया था। फाल्गुन अमावस्या को आप दीक्षित हुये । एक मास तप करने के उपरान्त पाटलवृक्ष के नीचे माध शुक्ला द्वितीया को चम्पागनरी में आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में चम्पानगरी में ही आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ६६ गणधर, ६००० केवली, ६१०० मन: पर्यवज्ञानी, ५४०० अवधिज्ञानी, १२०० चौदह पूर्वधारी, १०००० वैक्रियलब्धिधारी, ४७०० वादी, ७२००० साधु, १००००० साध्वी, २१५००० श्रावक और ४३६००० श्राविकायें थीं। भगवान् विमलनाथ (तेरहवें तीर्थंकर) विमलनाथ का जन्म कंपिलपुर में हुआ। पद्मसेन का जीव वैशाख शुक्ला द्वादशी को उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में आठवें देवलोक के महर्धिक विमान से च्युत होकर कंपिलपुर के शासक कृतवर्मा की धर्मपत्नी श्यामादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर माघ शुक्ला तृतीया को उत्तर भाद्रपद में भगवान् विमलनाथ का जन्म हुआ। गर्भकाल में माता तन-मन से निर्मल बनी रही, इस कारण से बालक का नाम विमलनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं राजपद का त्याग कर माध शुक्ला चतुर्थी को सहस्राम्रवन में आप दीक्षित हुये । दो वर्षों की कठिन तपस्या के उपरान्त कंपिलपुर के उद्यान में जम्बूवृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आषाढ़ कृष्णा सप्तमी को रेवती नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये। आपके धर्म-परिवार में ५७ गणधर, ५५०० केवली, ५५०० मन: पर्यवज्ञानी, ११०० चौदह पूर्वधारी, ४८०० अवधिज्ञानी, ९००० वैक्रियलब्धिधारी, ३२०० वादी, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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