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________________ ६२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास कि गर्भकाल में महारानी रामादेवी सब विधियों से कुशल रही इसी कारण से बालक का नाम सुविधिनाथ रखा गया । सुविधिनाथ का एक दूसरा नाम पुष्पदन्त भी प्राप्त होता है। ऐसी भी मान्यता है कि महारानी रामादेवी को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुआ था, इस कारण बालक का नाम पुष्पदन्त रखा गया । २३ वैवाहिक जीवन और राजपद का त्याग कर सहस्राम्रवन में आप दीक्षित हुये। ऐसी मान्यता है कि आपके साथ १००० राजाओं ने भी महाभिनिष्क्रमण किया था। चार मास की कठिन तपस्या के पश्चात् सहस्राम्रवन में मालूर (माली) वृक्ष के नीचे आपको कार्तिक शुक्ला तृतीया को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । भाद्रपद कृष्णा नवमी को मूल नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ८८ गणधर, ७५०० केवली, ७५०० मनः पर्यवज्ञानी, ८४०० अवधिज्ञानी, १५०० चौदहपूर्वधारी, १३००० वैक्रियलब्धिधारी, ६००० वादी, २००००० साधु, १२०००० साध्वी, २२९००० श्रावक और ४७१००० श्राविकायें थीं। भगवान् शीतलनाथ (दसवें तीर्थंकर) शीतलनाथ का जन्म भद्दिलपुर में हुआ । पदमोत्तर का जीव प्राणत स्वर्ग से च्युत होकर वैशाख कृष्णा षष्ठी को भद्दिलपुर के राजा दृढ़रथ की महारानी नन्दा की कुक्षि में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर माघ कृष्णा द्वादशी को महारानी ने बालक को जन्म दिया । 'त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र' में उल्लेख है कि गर्भकाल में महारानी नन्दा के स्पर्श मात्र से राजा दृढ़रथ के शरीर की भयंकर पीड़ा शान्त हो गयी, इसी कारण बालक का नाम शीतलनाथ रखा गया । २४ वैवाहिक जीवन एवं राजपद का त्याग करके पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में माध कृष्णा द्वादशी को आप दीक्षित हुये। तीन मास की कठिन तपस्या के पश्चात् सहस्राम्रवन में पीपल के वृक्ष के नीचे माघ कृष्णा चतुर्दशी को आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाक्ष कृष्णा द्वितीया को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये । आपके धर्म परिवार में ८१ गणधर, ७००० केवली ७५०० मनः पर्यवज्ञानी, ७२०० अवधिज्ञानी, १४०० चौदहपूर्वधारी, १२००० वैक्रिय लब्धिधारी, ५८०० वादी, १००००० साधु, १०६००० साध्वी, २८९००० श्रावक और ४५८००० श्राविकायें थीं । भगवान् श्रेयांसनाथ (ग्यारहवें तीर्थंकर) श्रेयांसनाथ का जन्म सिंहपुरी (वाराणसी) में हुआ । नलिनीगुल्म का जीव महाशुक्र स्वर्ग से च्युत होकर ज्येष्ठ कृष्णा षष्ठी को श्रावण नक्षत्र में सिंहपुरी के शासक विष्णु की धर्मपत्नी विष्णुदेवी के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर फाल्गुन कृष्णा द्वादशी को विष्णुदेवी ने सुन्दर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया । बालक के गर्भ में आते ही सम्पूर्ण राज्य का कल्याण हुआ और राज्य का वह काल श्रेयस्कर व्यतीत हुआ, इस कारण से बालक का नाम श्रेयांसनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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