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भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक आपके धर्म परिवार में १०७ गणधर, १२००० केवली, १०३०० मन: पर्यवज्ञानी, १०००० अवधिज्ञानी, २३०० चौदहपूर्वधारी १६८०० वैक्रियलब्धिधारी, ९६०० वादी, ३३०००० साधु, ४२०००० साध्वी, २७६००० श्रावक और ५०५००० श्राविकायें थी।। भगवान् सुपार्श्वनाथ (सातवें तीर्थंकर)
सुपार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ। नन्दिसेन का जीव छठे ग्रैवेयक से च्युत होकर विशाखा नक्षत्र में भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को वाराणसी के राजा प्रतिष्ठसेन की महारानी पृथ्वी के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को भगवान् सुपार्श्वनाथ का जन्म हुआ। वैवाहिक जीवन एवं राजपद का त्याग कर ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को आप दीक्षित हुये। नौ मास की तपस्या के पश्चात् सहस्राम्रवन में सिरीश या प्रियंगु वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। मूल नक्षत्र में फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को सम्मेतशिखर पर आप मोक्ष को प्राप्त हुये।
आपके धर्म परिवार में ९५ गणधर, ११००० केवली, ९१५० मनपर्यज्ञानी, ९००० अवधिज्ञानी, २०३० चौदह पूर्वधारी, १५३०० वैक्रियलब्धिधारी, ८४००वादी, ३००००० साधु, ४३००० साध्वी, २५०००० श्राविकाएँ व ४९३००० श्राविकायें थी। भगवान् चन्द्रप्रभ (आठवें तीर्थंकर)
आपका जन्म चन्द्रपुरी (वाराणसी) में हुआ। अभीन्द्र का जीव अनुत्तर देवलोक के विजय विमान से च्युत होकर अनुराधा नक्षत्र में चैत्र कृष्णा पंचमी को चन्द्रपुरी के राजा महासेन की धर्मपत्नी महारानी लक्ष्मणा के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर पौष कृष्णा द्वादशी को अनुराधा नक्षत्र में आपका जन्म हुआ। गर्भकाल में रानी लक्ष्मणा को चन्द्रपान करने की इच्छा पूर्ण हुई, इसी कारण बालक का नाम चन्द्रप्रभ रखा गया। वैवाहिक जीवन व राजपद का त्याग करके पौष कृष्णा त्रयोदशी को आप दीक्षित हुये । तीन मास की तपस्या के पश्चात् चन्द्रपुरी के सहस्राम्रवन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । श्रवण नक्षत्र में भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये।
__ आपके धर्म परिवार ९३ गणधर, १०००० केवली, ८००० मन: पर्यवज्ञानी, ८००० अवधिज्ञानी, २००० चौदहपूर्वधारी, १४००० वैक्रिय लब्धिधारी, ७६०० वादी, २५०००० साधु, ३८०००० साध्वी, २५०००० श्रावक एवं ४९१००० श्राविकायें थीं। भगवान् सुविधिनाथ (नवें तीर्थंकर)
सुविधिनाथ का जन्म काकन्दी में हुआ। महापद्म का जीव मूल नक्षत्र में फाल्गुन कृष्णा नवमी को वैजयन्त विमान से च्युत होकर काकन्दी के राजा सुग्रीव की महारानी रामादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को भगवान् सुविधिनाथ का जन्म हुआ। 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'२२ में वर्णन आया है
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