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________________ ६० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास जीवन व्यतीत करते हुये राजपद का उपभोग किया, तत्पश्चात् आप दीक्षित हुये। १८ वर्ष की दीर्घ तपस्या के पश्चात् अयोध्या में शाल (या प्रियंगु) वृक्ष के नीचे अभिजित नक्षत्र में पौष शुक्ला चतुर्दशी को आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख शुक्ला अष्टमी को पुष्य नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप परमपद मोक्ष को प्राप्त हुये। आपके धर्म परिवार में ११६ गणधर, १४००० केवली, ११६५० मन: पर्यवज्ञानी, ९८०० अवधिज्ञानी, १५०० चौदह पूर्वधारी, १९००० वैक्रिय लब्धिधारी, १२००० वादी, ३००००० साधु, ६३००००० साध्वी, २८८००० श्रावक एवं ५२७००० श्राविकायें थी। भगवान् सुमतिनाथ (पाँचवें तीर्थङ्कर) . सुमतिनाथ का जन्म भी अयोध्या में हुआ। पुरुषसिंह का जीव वैजयन्त विमान से च्युत होकर श्रावण शुक्ला द्वितीया को अयोध्या के राजा मेघ की महारानी मंगलवती के गर्भ में अवतरित हुआ। समय पूर्ण होने पर मधा नक्षत्र में वैशाख शुक्ला अष्टमी को भगवान् सुमतिनाथ का जन्म हुआ । पुत्र के गर्भ में आने के पश्चात् रानी मंगलावती ने राजकार्य में हाथ बटाना शुरु किया और प्रशासन की जटिलतम समस्याओं का सुगमता से समाधान करना प्रारम्भ किया, इसी कारण बालक का नाम सुमतिनाथ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं शासनपद का त्याग कर आप दीक्षित हुये। २० वर्ष तक कठिन तपस्या करने के उपरान्त अयोध्या के सहस्राम्र वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ला नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये।। आपके धर्म परिवार में १०० गणधर, १३००० केवली, १०४५० मन: पर्यवज्ञानी, ११००० अवधिज्ञानी, २४०० चौदह पूर्वधारी, १८४०० वैक्रिय लब्धिधारी, १०६५० वादी, ३२०००० साधु, ५३०००० साध्वी, २८१००० श्रावक एवं ५१६००० श्राविकायें थीं। भगवान्, पदम्प्रभ. (छठे तीर्थंकर) पद्मप्रभ का जन्म कौशाम्बी में हुआ। अपराजित मुनि का जीव देवयोनि से च्युत होकर चित्रा नक्षत्र में माध कृष्णा षष्ठी को कौशाम्बी के राजा धर की महारानी सुसीमा के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर कार्तिक शुक्ला द्वादशी को भगवान् पद्मप्रभ का जन्म हुआ। ऐसी मान्यता है कि गर्भकाल में रानी सुसीमा को पद्म की शय्या पर सोने की इच्छा होने तथा परम तेजोमय पद्मप्रभा की कान्तिवाला शरीर होने के कारण बालक का नाम पद्मप्रभ रखा गया । वैवाहिक जीवन एवं राजपद का उपभोग करने के पश्चात् आप दीक्षित हुये। चित्रा नक्षत्र के चैत्र पूर्णिमा को कौशम्बी के सहस्राम्रवन में प्रियंगु (वट) वृक्ष के नीचे आपने केवलपद को प्राप्त किया । सम्मेतशिखर पर मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को आप निर्वाण को प्राप्त हुये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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