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भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक में उल्लेख है कि गर्भ में आने के पश्चात् राजा जितशत्रु रानी विजया को खेल में नहीं हरा सके इसलिए अजित नाम रखा गया। युवावस्था में जितशत्रु कुमार अजित को राज्यभार देकर स्वयं को मुक्त करना चाहते थे, किन्तु कुमार ने पिता के आग्रह को सविनय अस्वीकार करते हुये अपने चाचा श्री सुमित्र को शासन प्रदान करने का सुझाव दिया। कुमार ने वैरागी मन से एक वर्ष तक वर्षीदान दिया, तत्पश्चात् माध शुक्ला नवमी को सहस्राम्रवन में पंचमुष्टि लोचकर दीक्षित हुये। १२ वर्ष तक कठिन तपस्या की । अयोध्या में सप्तवर्ण (न्योग्रोध) वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ला पंचमी को सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये। __आपके धर्म परिवार में ९५ गणधर, २२००० केवली, १४५० मनः पर्यवज्ञानी, ९४०० अवधिज्ञानी, ३५० चौदह पूर्वधारी, २०४०० वैक्रियलब्धिधारी, १२४०० वादी, १००००० साधु, ३३०००० साध्वी, २९८००० श्रावक और ५४५००० श्राविकायें थी। भगवान् सम्भवनाथ (तीसरे तीर्थंकर)
सम्भवनाथ का जन्म श्रावस्तीनगरी में हुआ। विपुलवाहन का जीव स्वर्ग से च्युत होकर श्रावस्ती नगरी के राजा जितारि के यहाँ फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को मृगशिर नक्षत्र में महारानी सेनादेवी (सुषेणा) के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी को भगवान् सम्भवनाथ का जन्म हुआ। ऐसी मान्यता है कि सम्भव के गर्भ में आने के बाद से देश में प्रचुर मात्रा में साम्ब और मूंग धान्य उत्पन्न हये थे, इस कारण बालक का नाम सम्भव रखा गया। विवाहोपरान्त गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के पश्चात् मृगशिर पूर्णिमा को सहस्राम्रवन में आप दीक्षित हुये। ऐसी जनश्रुति है कि आपके साथ एक हजार राजाओं ने भी गृहत्याग किया था। १४ वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् श्रावस्ती नगरी में शालवृक्ष के नीचे आपके केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । चैत्र शुक्ला पंचमी को मृगशिर नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर आप निर्वाण को प्राप्त हुये।
आपके धर्म परिवार में १०२ गणधर, १५००० केवली, १२१५० मन: पर्यवज्ञानी, ९६०० अवधिज्ञानी, २१५० चौदह पूर्वधारी, १९८०० वैक्रियलब्धिधारी, १२००० वादी, २००००० साधु, ३३६००० साध्वी, २९३००० श्रावक व ६३६००० श्राविकाएं थीं। भगवान्, अभिनन्दननाथ (चौथे तीर्थंकर)
अभिनन्दननाथ का जन्म अयोध्या में हुआ। मुनि महाबल का जीव देवलोक से च्युत होकर वैशाख शुक्ला द्वितीया को अयोध्या के राजा संवर की महारानी सिद्धार्था के गर्भ में अवतरित हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर माघ शुक्ला द्वितीया को भगवान् अभिनन्दननाथ का जन्म हुआ। गर्भ में आने पर राज्य में सर्वत्र प्रसन्नता की लहर
दौड़ गयी, इसी कारण नवजात शिशु का नाम अभिनन्दन रखा गया। विवाहोपरान्त गृहस्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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