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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास सिंहासन आदि वस्तुओं को उपहार प्रस्तुत करते थे, किन्तु अन-जल को नगण्य वस्तु समझकर उनके समक्ष कोई नहीं लाता था। गृहस्थों के समक्ष एक समस्या यह भी थी कि उन्हें भिक्षादान देने की विधि का ज्ञान नहीं था। इस तरह भ्रमण करते हुये लगभग एक वर्ष बीत गया। अन्न-जल के अभाव में भगवान् का शरीर कृश हो गया। ग्रामानुग्राम विचरण करते हुये भगवान् गजपुर (हस्तिनापुर) पधारे। गजपुर के राजा सोमप्रभ (बाहबली के पौत्र) के पुत्र राजकुमार श्रेयांस ने स्वप्न देखा कि सुमेरु पर्वत श्यामवर्ण हो गया है जिसे मैंने अमृत-कलश से अभिषिक्त कर पुन: धोया है।२० स्वप्न फल पर विचार कर पाठकों ने निष्कर्ष निकाला की कुमार को कोई विशिष्ट लाभ होनेवाला है।२१ वैसा ही हआ जैसा स्वप्नफल पाठकों ने कहा था। प्रात: श्रेयांस ने जब भगवान् को देखा तो उन्हें जाति स्मरण ज्ञान हो गया। भगवान् से अपने पूर्व जन्म के सम्बन्धों को याद किया और जाना कि वे एक वर्ष से निराहार है। भगवान् के पास आकर वन्दन किया और इक्षुरस के कलशों से भगवान् को इक्ष-रस का पारणा कराया। इस प्रकार भगवान् ने वर्षीतप का पारणा किया। इक्षु-रस दान का यह दिन जैन परम्परा में अक्षय-तृतीया पर्व के रूप में प्रसिद्ध है।
तप साधना द्वारा केवलज्ञान व केवलदर्शन की प्राप्ति के पश्चात् जनमानस को प्रबोधित करते हुये तृतीय आरे के तीन वर्ष और साढ़े आठ मास अवशेष रहने पर पर्यङ्कासन में स्थित, शुक्लध्यान द्वारा वेदनीय, आयुष्य, नाम व गोत्र कर्म को नष्ट कर आप परम पद निर्वाण को प्राप्त हुये ।
____ आपके धर्म परिवार में ८४ गणधर, २०००० केवली, १२६५० मन: पर्यवज्ञानी, ८००० अवधिज्ञानी, २०६०० वैक्रियलब्धिधारी, ४७५० चौदह पूर्वधारी, १२६५० वादी, ८४००० साधु, ३००००० साध्वी ३०५००० श्रावक और ५५४००० श्राविकाएं थी।
भगवान् ऋषभदेव के पश्चात् और अरष्टिनेमि से पूर्व मध्यवर्ती काल में अन्य बीस तीर्थंकर या धर्म प्रवर्तक हुये। परम्परा की दृष्टि से उनका संक्षिप्त परिचय निम्न हैभगवान् अजितनाथ, (दूसरे तीर्थंकर)
भगवान् अजितनाथ का जन्म विनीता नगरी में हुआ। विमलवाहन का जीव विजय विमान से च्यत होकर विनीता नगरी के राजा जितशत्रु के यहाँ वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को रोहिणी नक्षत्र में महारानी विजयादेवी के गर्भ से अवतरित हुआ। समय पूर्ण होने पर माध शुक्ला अष्टमी को भगवान् अजितनाथ का जन्म हुआ । नरेन्द्र देवेन्द्र आदि सहित असंख्य देवों ने पुष्पवर्षा एवं मंगलगान द्वारा उत्सव मनाया। राजा जितशत्रु ने याचको की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हुये अपार दान दिया और कारागार के द्वार खोल दिये। ऐसी मान्यता है कि माता के गर्भ में आने के बाद जितशत्रु अविजित रहे थे, इसी कारण बालक का नाम अजित रखा गया था किन्तु आवश्यकचूर्णि
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