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________________ ५१६ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास जूओनई प्रतिमा कांई बोलइ? किं वा अनादि प्रतिमानई काजई आवइ? डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। एह चउदमु बोल । १५. पनरमु बोल हवइ पनरमु बोल लिखीइ छइ-तथा श्री प्रश्नव्याकरण मध्ये त्रीजइं संवरद्वारई "चेइअटुं निज्जरहँ" जे एहवा शब्द छइं, तिहां केतलाएक इम कहई छई जे – “साधु चरित्रीउ प्रतिमानं वेआवच्च करइ।" तेहना प्रत्युत्तर पीछउ- तिहां तउ एहवा अधिकार छइं-जे साधु चरित्रीउ गृहस्थना घर थकी उपधि पाणी भात आणइ, अनइ आणीनइ अनेरा साधुनइं आपइ, ते प्रीछउ जे 'चेइअढे' -चित्यर्थो ज्ञानार्थों एतलइ ज्ञाननइं अर्थई, तथा निर्जरार्थई आपइ, तथा एहजि सूत्र मध्ये घणुं विस्तार छइ जे–“अप्रीतिकारियां घर मांहि न पइसइ, अप्रीतिकारिया- भात पाणी उपधि न लीइ।' वली इम कर्दा जे "पीढ़ फलग सिज्जा संथारग वत्थ पाय कंबल दंडग रजोहरण निशिज्जा चोलपट्टय मुहपोत्तीय पायपुंछणादि भायण भंडोवहि उवगरण' एतला वानां माहिलं प्रतिमानई स्युं काजइ आवई ? अनइ साधुनई तु ए सघला वानां काजइ आपइ। इहाइ तउ दत्त नउ अधिकार छइ, जे दातार- दीघु लेवें। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । एह पुनरमु बोल। १६. सोलमु बोल ___ हवइ सोलमु बोल लिखीइ छइ। तथा प्रश्नव्याकरण मांहिं पहिलइ आश्रवद्वारई पृथ्वीकायतइं अधिकारइं-“गढ़ पीटणी आवाश घर हाट, प्रतिमा प्रासाद सभा इत्यादिकनई कारणई पृथ्वीनइं हणइ'- ते श्री वीतरागईं अधर्मद्वार मांहि घाल्युं। इहां तउ प्रतिमाना नीचोड़कर्या दीसइ छई। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । तथा केतलाएक एम कहई छई जे इहाइ तु इम का-“जे पुव्वाहिं संति ते मंदबुद्धिया", मंदबुद्धी शब्दई मिथ्यात्वी कहीइ। ए अर्थ सूत्रस्युं मिलइ नहीं। ते एतला भणी जे, पांचमां अधर्मद्वार मांहिं परिग्रहनइ अधिकारइं चक्रवत्ति बलदेव वासुदेव अनुत्तरविमानवासी देवता इत्यादि घणां कहीनइ आगलि कडं जे “मंदबुद्धि हुंता परिग्रहनउ संचउ करइं” तउ - जोउनई जिको कहई छई-‘मंदबुद्धी शब्दई मिथ्यात्वी' ते अर्थ जूठा, सूत्रविरुद्ध दीसइ छई। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। एह सोलमु बोल। १७. सत्तरमुं बोल हवइ सत्तरमुं बोल लिखीइ छइ। तथा केतलाएक इम कहइंछइं जे "आज्ञाइं धर्म कहीइ, पणि दयाई धर्म न कहिइ” दयाई धर्म कहिउ छइ ते लिखीइ छ।। तुलिआविसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीइज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ।।१।। इति श्री उत्तराध्ययन पंचमाध्ययने गाथा ३०। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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