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________________ आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा ४९३ मुनि श्री रमेशमुनिजी आपका जन्म मारवाड़ के मजल ग्राम में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती आशाबाई कोठारी व पिता का नाम श्रीवस्तीमलजी है। दिनांक ९.५.१९५४ को झरिया में मुनि श्री प्रतापमलजी के शिष्यत्व में आप दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने ‘साहित्यरत्न', 'संस्कृत विशारद', 'जैन सिद्धान्ताचार्य' आदि उपाधियाँ ग्रहण की। आप द्वारा लिखित कृतियाँ निम्न हैं- 'प्रताप कथाकौमुदी' (तीन भागों में), 'जीवन दर्शन', 'वीरभान उदयभान चरित्र', 'गीत पीयूष', 'विखरे मोती', 'निख़रे हीरे' आदि। वर्तमान में आप श्री अपनी परम्परा के सन्तों के साथ श्रमणसंघ में हैं। मुनि श्री सुरेशमुनिजी आप जन्म से दिगम्बर जैन थे। आपके पिताजी का नाम श्री गयाप्रसाद जैन एवं माता का नाम श्रीमती ज्ञानदेवी था। वि०सं० २०१६ माघ शुक्ला त्रयोदशी को गुरुवर्य श्री प्रतापमलजी की निश्रा में दीक्षित हुये । आपको दीक्षित संयममार्ग पर लाने का पूरा श्रेय श्रद्धेय पण्डितरत्न श्री कल्याणऋषिजी को जाता है। मुनि श्री नरेन्द्रमुनिजी आपका जन्म मेवाड़ के बिलौदा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भेरुलालजी व माता का नाम श्रीमती धूलिदेवी है। वि०सं० २०२० माघ वदि प्रतिपदा को मल्हारगढ़ में गुरुवर्य मुनि श्री प्रतापमलजी के प्रशिष्य के रूप में आप दीक्षित हुये। मुनि श्री अभयमुनिजी आपका जन्म मेवाड़ के 'कांकरोली' नामक ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री चुन्नीलालजी व माता का नाम श्रीमती नाथीबाई है। महासती श्री छोगकुंवरजी, श्री मदनकुंवरजी व श्री विजयकुंवरजी द्वारा प्रतिबोधित हो वि०सं० २०२२ माघ वदि तृतीया के दिन गुरुदेव मुनि श्री प्रतापमलजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा स्वीकार की। मुनि श्री विजयमुनिजी 'विशारद' __ आपका जन्म वि० सं० २००८ माघ सुदि दशमी दिन मंगलवार को उदयपुर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री मनोहरसिंह कोठारी व माता का नाम श्रीमती शांतादेवी है। वि०सं० २०२३ मार्गशीर्ष (मृगसर) वदि दशमी की शुभ बेला में मन्दसौर में आप गुरुवर्य मुनि श्री प्रतापमलजी के प्रशिष्य बने। मुनि श्री मन्त्रामुनिजी आपके जन्म स्थान व जन्म-तिथि के विषय में कोई जानकारी नहीं है। वि०सं० २०२४ मार्गशीर्ष वदि दशमी के दिन जोधपुर में आप गुरुप्रवर मुनि श्री प्रतापमलजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। 'मुनि श्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ' में ऐसा उल्लेख मिलता है कि आपको ‘दशवैकालिक', 'उत्तराध्ययन' व कई थोकड़े कंठस्थ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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