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________________ ४७९ आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा मुनि श्री. नैनसुखजी आपका जन्म जावद में हुआ। वि० सं० १९६३ में डूंगले में दीक्षा धारण कर मुनि श्री भीमराजजी के शिष्य बने । मुनि श्री. जवाहरलालजी आपका जन्म मारवाड़ के कालोरिया ग्राम में हुआ। वि० सं० १९८३ ज्येष्ठ सुदि दशमी को दीक्षा धारण की और उपाध्याय श्री शेषमलजी के शिष्य बने। मुनि श्री चैनरामजी आप वि० सं० १९४८ में मुनि श्री जवाहरलालजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। इसके अतिरिक्त आपके सम्बन्ध में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी आपका जन्म बड़ी सादड़ी में हुआ। वि०सं० १९५८ में मुनि श्री जवाहरलालजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। आपके दो पुत्र श्री पन्नालालजी और श्री रतनलालजी ने भी दीक्षा ग्रहण की थी। मुनि श्री हीरालालजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री शाकरचन्दजी आपका जन्म कंजार्डा में हुआ था। वि०सं० १९३५ में आपने मुनि श्री हीरालालजी के शिष्यत्व में आर्हती दीक्षा अंगीकार की थी। जैन दिवाकर मुनि श्री चौथमलजी आपका जन्म वि०सं० १९३४ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी दिन रविवार को नीमच (म०प्र०) में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती केसरबाई व पिता का नाम श्री गंगाराम चोरड़िया था। १६ वर्ष की आयु में आपका पाणिग्रहण संस्कार हुआ। विवाह के दो वर्ष पश्चात् वि०सं० १९५२ फाल्गुन शुक्ला पंचमी दिन रविवार को मुनि श्री हीरालालजी के कर-कमलों से इन्दौर के बोलिया ग्राम में आप दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, ऊर्दू, फारसी, गुजराती, राजस्थानी, मालवी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया तथा जैनागम, गीता, रामायण, भागवत, कुरान, बाइबिल आदि विभिन्न धर्मग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। अपने संयमी जीवन के ५५ वर्षों में आपने राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रदेशों के विभिन्न ग्राम-नगरों में विहार कर जैनधर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया। आपके प्रभावशाली व्यक्तित्व व योग्यता से प्रभावित हो श्रीसंघ ने 'जगद्वल्लभ', 'प्रसिद्धवक्ता', 'जैन दिवाकर' आदि पदों से सम्मानित किया। आपने लाखों लोगों द्वारा मांस-मदिरा, गांजा-भांग, तम्बाकू-त्याग, शिकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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