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________________ ४८० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास व पशु बलि का त्याग करवाया तथा शिक्षण संस्थाओं तथा वृद्धाश्रमों आदि की स्थापना करवायी । आपने मेवाड़, मारवाड़, और मालवा क्षेत्र के राजा-महाराजा और जागीरदारों को अपने उपदेशों से प्रभावित कर शिकार आदि के त्याग करवाये और हिंसा निषेध के लिये आज्ञा-पत्र (पट्टे) प्राप्त किये। आप द्वारा रचित साहित्य हैं _ 'भगवान महावीर का आदर्श जीवन', 'जम्बूकुमार', 'श्रीपाल', 'भविष्यदत्त', 'चम्पकसेठ', 'धन्ना-शालिभद्र', 'नेमिनाथ', 'पार्श्वनाथ' आदि चरित्र, 'आदर्श रामायण', 'जैन सुबोध गुटका', 'चतुर्थ चौबीसी' आदि। इनके अतिरिक्त कई उपदेशपरक स्तवन तथा निर्ग्रन्थ प्रवचन आदि का आपने सम्पादन किया है। मुनि श्री शंकरलालजी, उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी, उपाध्याय केवलमुनिजी, तपस्वी श्री माणकचन्दजी आदि विविध प्रतिभाओं के धनी ४० से भी अधिक आपके शिष्य थे जिनमें से कुछ का परिचय आगे दिया गया है। लगभग ७३ वर्ष की आयु पूर्ण कर वि० सं० २००७ मार्गशीर्ष शुक्ला नवमी दिन रविवार को कोटा (राजस्थान) में आपका स्वर्गवास हुआ। आप द्वारा किये गये वर्षावास इस प्रकार हैंवि० सं० स्थान वि० सं० स्थान १९५३ झालरापाटण १९६९ रतलाम १९५४ रामपुरा १९७० १९५५ बडी सादड़ी १९७१ आगरा १९५६ जावरा १९७२ पालनपुर १९५७ रामपुरा जोधपुर १९५८ मन्दसौर २९७४ अजमेर १९५९ ब्यावर १९६० नाथद्वारा १९७६ दिल्ली १९६१ खाचरौंद १९७७ जोधपुर १९६२ रतलाम १९७८ रतलाम १९६३ कानोड़ १९७९ उज्जैन १९६४ जावरा १९८० १९६५ मन्दसौर १९८१ घाणेराव सादड़ी १९६६ १९८२ ब्यावर जावरा १९८३ ११६८ बड़ी सादड़ी १९८४ चित्तौड़ १९७३ नीमच १९७५ इन्दौर उदयपुर उदयपुर जोधपुर Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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