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________________ आचार्य मनोहरदासजी और उनकी परम्परा ४३९ मुनि श्री मोहनलालजी - आप वि०सं० १७८८, चैत्र शुक्ला द्वितीया,दिन वृहस्पतिवार को दीक्षित हुए। जानकारी का अन्य कोई स्रोत उपलब्ध नहीं है। इनमें से मुनि श्री खेमचन्दजी के छ: शिष्य हुये जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है मुनि श्री धनाजी - आपके विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री लालचन्दजी - आप वि०सं० १७९० मार्गशीर्ष कृष्णा षष्ठी को दीक्षित हुये। मुनि श्री मौजीरामजी - आप वि०सं० १७९२ में सिंघाणा-खेतड़ी में दीक्षित हुये। मुनि श्री सादारामजी -आपने वि०सं० १८१६ श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री डेडराजजी - आप मुनि श्री सादारामजी के साथ ही उसी दिन दीक्षित हुये थे। मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी - आप भी मुनि श्री सादारामजी एवं मुनि श्री डेडराजजी के साथ ही दीक्षित हुये । आपके निम्न दो शिष्य थे मुनि श्री बृजलालजी - आपने वि०सं० १८६३ वैशाख पूर्णिमा को दीक्षा अंगीकार की थी। ___ मुनि श्री अगरचन्दजी - आपकी दीक्षा वि०सं० १८८१ ज्येष्ठ शुक्ला अष्टमी को हुई थी। आचार्य श्री. सीतारामजी ____ आपके जीवन के विषय में कोई विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इतना ज्ञात होता है कि आप मनोहरदास सम्प्रदाय के तृतीय आचार्य थे। आपके कई शिष्य हुये जिनमें से मुनि श्री शिवरामदासजी, श्री मनसुखरामजी, श्री सेठमलजी और श्री सहजरामजी आदि प्रमुख थे। आचार्य श्री शिवरामदासजी आपका जन्म वि०सं० १७६३ के आस-पास दिल्ली में हुआ। आपके मातापिता का नाम अनुपलब्ध है। लगभग १६ वर्ष की आयु में वि०सं० १७७९ में कुतानाशहर (उ०प्र०) में आचार्य श्री सीतारामजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपकी ज्ञान गम्भीरता और उग्र संयम साधना को देखते हुए आचार्य श्री सीतारामजी के - १. पण्डितरत्न श्री प्रेममुनि स्मृति ग्रन्थ, पृ० २१२-२१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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