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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
स्वर्गवास के पश्चात् सिंघाणा - खेतड़ी श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद पर विभूषित किया। सिंघाणा-खेतड़ी में ही आप समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ हुये । स्वर्गवास की तिथि उपलब्ध नहीं है। आपके चार प्रमुख शिष्यों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वे चार शिष्य हैं- मुनि श्री देवकरणजी, मुनि श्री नूणकरणजी, मुनि श्री रामकृष्णजी और मुनि श्री हरजीमलजी । 'पण्डितरत्न मुनिश्री प्रेममुनि स्मृति ग्रन्थ' में इन चार शिष्यों के अतिरिक्त दो और शिष्यों के नाम उपलब्ध होते हैं जो वि० सं० १८४० में आपके साथ शाहजहानाबाद (आगरा ) में पधारे थे। उन दोनों शिष्यों के नाम हैं- मुनि श्री हिमताजी और मुनि श्री पूर्णाजी ।
आचार्य श्री शिवरामदासजी के पशचात् यह परम्परा दो भागों में विभक्त हो गई। एक शाखा जिसका नेतृत्व श्री नूणकरणजी ने किया और दूसरी शाखा के प्रमुख मुनि श्री हरजीमलजी हुये।
मुनि श्री देवकरणजी
आपका विशिष्ट परिचय उपलब्ध नहीं है। आपके विषय में इतनी जानकारी उपलब्ध होती है कि आपका जन्म सिंघाणा - खेतड़ी में हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती रामकोर व पिता का नाम श्री मनसाराम था। आप जाति से अग्रवाल थे। चरखीदादरी में आपका स्वर्गवास हुआ।
मुनि श्री नूणकरणजी (लूणकरणजी)
आपका जन्म सिंघाणा- खेतड़ी में हुआ। आप जाति से हुड़कावंशीय अग्रवाल थे। वि०सं० १८३५ मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को झुंझनु ( राजस्थान) में आप दीक्षित हुये और काँघला में आपका स्वर्गवास हुआ।
मुनि श्री रामकृष्णजी
आपके विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नही है।
मुनि श्री हरजोमलजी
आपका जन्म मेरठ जिले के मलूकपुर ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री सहजरामजी और माता का नाम श्रीमती भगवतीदेवी था। वि० सं० १८४० में आप दिल्ली में मुनि श्री शिवरामदासजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये । आप एक कठोर तपस्वी के रूप
जाने जाते थे। आपने कई दीर्घकालिक तपश्चरण किये और निरन्तर सात वर्षों तक बेलेबेले का तप किया। इनके साथ प्रकीर्णक तप भी किया करते थे। वि० सं० १८८८ माघ शुक्ला सप्तमी दिन गुरुवार को संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ।
आपके दो प्रमुख शिष्यों के नाम ही उपलब्ध होते हैं- मुनि श्री रत्नचन्दजी और मुनि श्री लालजी । मुनि श्री रत्नचन्दजी मुनि श्री हरजीमलजी के पट्टधर हुये। मुनि श्री
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