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________________ ४३८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास खेतड़ी के पर्वतशिखर पर समाधि (छतरी) में गुरुदेव के साथ आपने चार महीने का मासखमण तप किया था। जब आचार्य मनोहरदासजी ने क्रियोद्धार किया था तब आपने उनका पूरा सहयोग किया था। आप एक सर्वश्रेष्ठ प्रतिबोधक थे। आपने बड़ौत,विनौली, दाघट और काँधला आदि क्षेत्रों में अधिकांश अग्रवाल जाति को प्रतिबोधित कर स्थानकवासी बनाया था। वि०सं० १७७४ के लगभग आचार्य श्री मनोहरदासजी के स्वर्गवास के प्रश्चात् सिंधाणा- खेतड़ी में श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। आपने अपने आचार्यत्व काल में जिनशासन की खूब ज्योति जगायी। आपके जीवन से अनेक अलौकिक और विशिष्ट घटनायें जुड़ी हैं जिनका यहाँ उल्लेख नहीं किया जा रहा है। आपकी स्वर्गवास तिथि उपलब्ध नहीं है। इतना ज्ञात होता है कि समाधिपूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ था। ऐसी जनश्रुति है कि आपका शिष्य परिवार बहुत विशाल था, किन्तु दो ही प्रमुख शिष्यों के नाम उपलब्ध होते हैं - श्री माणकचन्दजी और श्री सीतारामजी। श्री माणकचन्दजी का जन्म हरियाणा के हलालपुर नामक ग्राम में हआ था। आपके पिता का नाम श्री बाबूरामजी गिन्दोड़िया था। वि० सं० १७७५ में आचार्य श्री भागचन्दजी के सान्निध्य में आपकी दीक्षा हुई । बड़ौत (उ०प्र०) में आपका स्वर्गवास हो गया। स्वर्गवास की तिथि उपलब्ध नहीं है। आचार्य श्री भागचन्दजी गुरुभ्राता श्री नानकचन्द्रजी जो वि० सं० १७५१ मार्गशीर्ष कृष्णा षष्ठी को नारनौल में दीक्षित हुये थे, के आठ शिष्य थे। उन आठ शिष्यों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है मुनि श्री रामचन्द्रजी. - आपका कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता है। मुनि श्री मूलचन्द्रजी - आपका भी कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता है। मुनि श्री खेमचन्दजी. - आपका जन्म सिंघाणा-खेतड़ी में हुआ। जन्म-तिथि उपलब्ध नहीं है। वि०सं० १७७५ आश्विन शुक्ला षष्ठी दिन वृहस्पतिवार को दिल्ली में आप दीक्षित हुए। मुनि श्री गोविन्दरामजी -आपका जन्म सिंघाणा-खेतड़ी में हुआ था। वि० सं० १७७५ आश्विन शुक्ला षष्ठी दिन बृहस्पतिवार को दिल्ली में आप दीक्षित हुए। मुनि श्री भगवन्तरामजी - आप वि०सं० १७८१ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को दीक्षित हुए थे। इसके अतिरिक्त कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री मन्त्रीरामजी - आप वि०सं० १७८२ मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया दिन वृहस्पतिवार को दीक्षित हुए। अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री साहबरामजी - आप वि०सं० १७८७, चैत्र कृष्णा षष्ठी दिन वृहस्पतिवार को दीक्षित हुए। अन्य जानकारी अनुपलब्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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