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________________ ४२२ २०१८ कोटा बूंदी स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास २०१२ माटुंगा (मुम्बई) २०१७ उज्जैन २०१३ कान्दाबाड़ी (मुम्बई) २०१४ इन्दौर २०१९ जयपुर २०१५ थांदला २०२० दिल्ली २०१६ सैलाना २०२१ २०२२ से मालवा में विहार कर रहे थे। इसके आगे की जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है। मुनि श्री. भगवानदासजी. आपका जन्म अहमदनगर के समीप चाँदा ग्राम में हआ। आपके पिताजी का नाम नन्दरामजी और माता का नाम श्रीमती काशीबाई था। आप जाति से ओसवाल थे। आपने मुनि श्री रूपचन्दजी (पंजाब) के प्रवचन से प्रेरित होकर पूज्य श्री चम्पालालजी के शिष्य मुनि श्री रामचन्द्रजी के पास वि०सं० १९६९ मार्गशीर्ष कृष्णा तृतीया दिन बुधवार को दीक्षा ग्रहण की। आपने अपने संयमपर्याय में जो तपश्चर्यायें की वे इस प्रकार हैं वि०सं० १९७० में साकूड (दक्षिण) में १७ दिन के तप। वि०सं० १९७१ हातोद (मालवा) में २१ दिन के तप । वि० सं० १९७२ चैत्र कृष्णा नवमी से साढ़े दस वर्ष तक तक्राहार- इस बीच उपवास भी चलता रहा । वि० सं० १९७८ रतलाम में २३ दिन के तप, वि०सं० १९८२ नायडोंगरी (दक्षिण) में २७ दिन के तप, वि०सं० १९८३ धूलिया (खानदेश) में ३२ दिन के उपवास, मनमाड में २१ दिन के उपवास, नासिक में १७ दिन के उपवास, चार मास तक भद्रा तप और छ: मास तक बेले-बेले पारणा। वि०सं० १९८५ में बम्बई में ४५ दिन के उपवास, पूना में १४ दिन के उपवास और चार मास तक तेले-तेले पारणा। वि०सं० १९८६ में रतलाम में ६३ के उपवास, विहार करते हुए कुशलगढ़ में ३२, १६,और १२ दिन के उपवास। वि०सं० १९८७ थान्दला में ६२ दिन के उपवास, विहार के दौरान २६ और १५ दिन के उपवास । वि०सं० १९८८ में लीम्बड़ी में ६७ दिन व उपवास, विहार के दौरान २८ दिन के उपवास, ३१ दिन के उपवास और २२ दिन के उपवास। वि० सं०१९८९ उज्जैन में ५५ दिन के उपवास, विहार के दौरान १७ दिन के उपवास और छ: महीने छाछ पर रहे। वि०सं० १९९० अजमेर में ६१ दिन के उपवास, विहार के दौरान २७ दिन के, १७ दिन के, २५ दिन के उपवास। वि० सं० १९९१ में चार मास तक तेले-तेले पारणा और साथ ही १७ दिन के उपवास, ११ दिन के उपवास, १३ दिन के उपवास, ९ दिन के उपवास, विहार के दौरान १७ और १३ दिन के उपवास, वि०सं० १९९२ उज्जैन में ५६ दिन के उपवास। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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