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________________ ४२१ आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा पुण्यलताचरित्र, सुखानन्द-मनोरमा, सती कलावती, शीलवती (बड़ी), शीलवती (छोटी), नल-दमयन्ती, चन्दा चरित्र, चम्पकमाला चरित्र, जैन महाभारत, संस्कृत श्लोक संग्रह (दो भागों में), दृष्टान्त संग्रह , दृष्टान्त शतक आदि भी आपकी रचनाएँ हैं। - वि० सं० २०२० में अजमेर सम्मेलन में श्रमण संघ के द्वितीय पट्टधर पूज्य श्री आनन्दऋषिजी के नेतृत्व में आपको प्रवर्तक पद पर प्रतिष्ठित किया गया। यद्यपि आपने सम्मेलन में भाग नहीं लिया था। दीक्षित होने के बाद आपने जो चातुर्मास किये उनकी सूची निम्न हैं - वि० सं० स्थान वि० सं० स्थान १९६८ शाजापुर १९८८ रतलाम १९६९ जोधपुर १९८९ उज्जैन १९७० किशनगढ़ १९९० टोंक १९७१ इन्दौर १९९१ मुम्बई १९७२ थांदला १९९२ जालना १९७३ उदयपुर १९९३ सिकन्दराबाद १९७४ सादड़ी १९९४ मद्रास १९७५ रतलाम १९९५ बेंगलोर १९७६ धार १९९६ हैदराबाद १९७७ रतलाम १९९७ लातूर १९७८ खाचरौंद १९९८ इन्दौर १९७९ रतलाम १९९९ पेटलावद १९८० २००० रतलाम १९८१ जयपुर २००१ इन्दौर १९८२ मोरवी २००२ लीम्बड़ी १९८३ पालनपुर २००३ थांदला १९८४ काँदाबाड़ी थांदला १९८५ माटुंगा (मुम्बई) २००५-२००९ इन्दौर १९८६ खाचरौंद . २०१० थाँदला १९८७ थांदला २०११ दिल्ली २००४ सैलाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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