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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास दीक्षित होने के पश्चात् आपने राजस्थान, जमनापार, दिल्ली, ढढाड, होड़ोती, झालावाड़, मेवाड़, मालवा, महाराष्ट्र, मुम्बई, हैदराबाद, मद्रास, सौराष्ट्र आदि प्रदेशों में विचरण किये। वि० सं० २००७ माध शुक्ला एकादशी को दिन के २.३० बजे आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री सूर्यमुनिजी
आपका जन्म वि०सं० १९५८ वैशाख पूर्णिमा को नागदा और कोटा के बीच स्थित बस्ती के निवासी श्री बच्छराजजी पीपाड़ा के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती फूलाबाई था। आपके बचपन का नाम भेरुलाल था। बाल्यावस्था में आपकी माता जी का देहावसान हो गया। वि० सं० १९६७ में आपके पिताजी ने अपना मकान स्थानक में दान दे दिया और आपको लेकर खाचरौंद आ गये। आपके पिता के मित्र श्री जीतमलजी और उनके दो पुत्र श्री कन्हैयालालजी और श्री हीरालालजी भी खाचरौंद पधारे। पाँचों वैरागी पूज्य श्री ताराचन्दजी के पास बदनावर पधारे। वि०सं० १९६७ महासुदि पंचमी को दीक्षा की तिथि निर्धारित हुई । किन्तु विरोधियों द्वारा कुछ विघ्न उपस्थित किये जाने के कारण दीक्षा का कार्यक्रम नहीं हो सका । बदनावर के ठाकुर ने भेरुलालजी, कन्हैयालालजी और हीरालालजी को अल्पव्यस्क होने के कारण अपने महल में बुला लिया तथा दीक्षित नहीं होने दिया। वहाँ से कन्हैयालालजी और हीरालालजी को उनके मामा बुलाकर ले गये, किन्तु भेरुलालजी के मामा नहीं आये। इस घटना के पश्चात् पूज्य श्री नन्दलालजी धार पधारे, वहाँ जीतमलजी ने पूज्यश्री से दीक्षा ग्रहण की । धार से विहार कर पूज्य श्री उज्जैन पधारे । वहीं वि० सं० १९६८ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को बच्छराजजी और भेरुलालजी दोनों पिता-पुत्र ने आहती दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार बालक भेरुलाल श्री सूर्यमुनिजी हो गये। दीक्षा के समय आपकी उम्र १० वर्ष की थी। अपने गुरु के साथ आपका प्रथम चातुर्मास शाजापुर में हुआ था।
दीक्षित होने के बाद आपने हिन्दी भाषा का सामान्य ज्ञान प्राप्तकर 'कातन्त्र व्याकरण' का अभ्यास किया। तदुपरान्त 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' का अध्ययन किया। अल्पकाल में ही आपने 'दशवैकालिक' और 'उत्तराध्ययन' को कण्ठस्थ कर लिया। थोकड़े भी आपने याद किये थे। कुछ वर्षों पश्चात् आपने पिङ्गल (कविता सम्बन्धी नियम) का अध्ययन किया। किसी बात को तुकबन्दी में कहना आपके बचपन का शौक है। आप अपनी रचना प्राचीन बोलचाल वाली भाषा में रचते थे। भजन-प्रदीप, भजन भास्कर, संगीत सुधाकर, सूर्यस्तवन-संग्रह आदि भजन संग्रह, हरिकेशबल मुनिचरित्र, सप्तचरित्र, मुनिपतिचरित्र, चरित्र-चन्द्रिका, जैन चरित भजनावली, मृगावती चरित्र, गुणसुन्दरी चरित्र, भावना-प्रबोध
और जैन रामायण आदि आपकी प्रकाशित रचनायें हैं। इनमें जैन रामायण को ज्यादा प्रसिद्धि मिली। रत्नपाल चरित्र, मानतुंग- मानवती, धर्मपाल चरित्र, कनकश्री चरित्र,
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