SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१९ वि० सं० स्थान २००७ २००८ २००९ २०१० माटुंगा २०११ इन्दौर आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा वि०सं० स्थान अमलनेर २०२२ मुम्बई (कांदाबाड़ी) मुम्बई (कांदाबाड़ी) २०२३ मुम्बई (माटुंगा) २०२४ कोटा धुलिया २०२५ नासिक इन्दौर २०२६ घाटकोपर उज्जैन २०२७ अमलनेर २०२८ नासिक २०२९ इन्दौर २०३० बदनावर घाटकोपर इन्दौर २०३२ खाचरौंद राजगढ़ २०३३ रतलाम थानदला २०३४ खाचरौंद २०३५ थांदला इन्दौर २०३६ से २०४.१ तक रतलाम इन्दौर इन्दौर २०१२ २०१३ २०१४ २०१५ २०१६ २०१७ २०१८ २०१९ २०२० २०२१ २०३१ इन्दौर मुनि श्री बच्छराजजी आपका जन्म वि०सं०१९३० भाद्र कृष्णा अष्टमी को श्री जवरचन्दजी पीपाड़ा के यहाँ हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती जड़ावबाई था। आपका जन्म आलोर में हआ, किन्तु आप मूलत: मारवाड़ के निवासी थे। आजीविका के लिए आपके पिताजी मारवाड़ से पेटलावद गये, वहाँ से ताल गये किन्तु वहाँ भी अनुकूलता न होने पर आलोर पधारे। इस प्रकार आलोर ही आपका जन्म-स्थान माना जाना चाहिए। युवावस्था में आपका विवाह हआ। आपकी पत्नी का नाम श्रीमती फूलकुंवरबाई था। आपके कई पुत्र हुए जिनमें एकमात्र भेरुलालजी (प्रवर्तक श्री सूर्यमुनिजी) ही चिरंजीवी हुए। भेरुलालजी जब ५-६ वर्ष के थे तब आपकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। फलस्वरूप आपके मन से संसार के प्रति उदासीनता पैदा हो गयी और आपने अपने साथ-साथ पुत्र श्री भेरुलालजी को भी दीक्षा के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार आपने अपने ९ वर्ष के पुत्र श्री भेरुलालजी व तीन और दीक्षार्थियों के साथ वि० सं० १९६८ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को दीक्षा ग्रहण की। आपके दीक्षा गुरु मुनि श्री नन्दलालजी थे। उनकी निश्रा में ही आपने शास्त्रों का अध्ययन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy