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________________ आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा ४०३ मुनि श्री रतनचन्दजी का खींचन में बहुत दिनों तक स्थिरवास हो हुआ, फलतः यह शिष्य परम्परा 'खींचन सम्प्रदाय' के नाम से भी जानी जाने लगी । किन्तु वर्तमान में 'ज्ञानगच्छ' ही इसका प्रसिद्ध नाम है। मुनि श्री समरथमलजी आप इस परम्परा के विशिष्ट संतों में से एक थे। आपका जन्म वि०सं० १९५५ में राजा के पिंपलगाँव में हुआ था। मूलतः आप मारवाड़ के जसवंताबाद के निवासी थे। आप मुनि श्री मुलतानचन्दजी के संसारपक्षीय पुत्र तथा मुनि श्री सिरेमलजी के भतीजा थे। वि०सं० १९७१ वैशाख शुक्ला एकम को आपने दीक्षा ग्रहण की। आपके बचपन का नाम भीखमचन्द था। आप जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ एवं चरित्रनिष्ठ संत थे। वि० सं० २०२९ में राजस्थान के बालोतरा में आपका स्वर्गवास हो गया। वर्तमान में तपस्वी मुनि श्री चम्पालालजी ही इस संघ के प्रमुख हैं। इस परम्परा में आचार्य पद देने की परम्परा नहीं है। दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ विद्वान् मुनि ही संघ का संचालन करते हैं। वर्तमान में शाजापुर शाखा से उद्भूत ज्ञानगच्छ में ५४ मुनि और ३९७ साध्वियाँ हैं जो तपस्वीराज मुनि श्री चम्पालालजी की आज्ञा में विचरण करते हैं। विद्यमान मुनिराजों के नाम हैं- श्री प्रकाशमुनिजी, श्री उत्तममुनिजी, श्री मथुरामुनिजी, श्री रोशनमुनिजी, श्री हुक्मीचन्दमुनिजी, श्री जुगराजमुनिजी, श्री रमेशमुनिजी, श्री अमृतमुनिजी, श्री कनकमुनिजी, श्री प्रवीणमुनिजी, श्री धन्नामुनिजी, श्री राजेशमुनिजी, श्री हीरामुनिजी (बड़े), श्री वसंतीलालमुनिजी, श्री लक्ष्मीमुनिजी, श्री पारसमुनिजी, श्री रवीन्द्रमुनिजी, श्री वीरेन्द्रमुनिजी, श्री प्रेममुनिजी, श्री राकेशमुनिजी, श्री प्रमुदितमुनिजी, श्री सुगनमुनिजी, श्री विजयमुनिजी (बड़े), श्री विजयमुनिजी (छोटे), श्री तारामुनिजी, श्री निशान्तमुनिजी, श्री हरीशमुनिजी, श्री विशालमुनिजी, श्री हीरामुनिजी (छोटे), श्री सुरेन्द्रमुनिजी, श्री इन्द्रमुनिजी, श्री अजितमुनिजी, श्री भीखममुनिजी, श्री प्रशान्तमुनिजी, श्री नवरत्नमुनिजी, श्री इन्द्रेशमुनिजी श्री शालिभद्रमुनिजी, श्री मनीषमुनिजी, श्री नरेन्द्रमुनिजी, श्री इन्द्रेशमुनिजी, श्री प्रदीपमुनिजी, श्री झब्बालालमुनिजी, श्री रत्नमुनिजी, श्री भद्रकमुनिजी, श्री गौतममुनिजी, श्री भूपेन्द्रमुनिजी, श्री मिलापमुनिजी, श्री शान्तिमुनिजी, श्री जिनेशमुनिजी, श्री विकासमुनिजी, श्री राजेशमुनिजी, श्री धर्मेशमुनिजी और श्री योगेशमुनिजी। मालवा परम्परा के प्रभावी सन्त पूज्य श्री धर्मदासजी की मालवा परम्परा में अनेक प्रभावी और चामत्कारिक सन्त हुए हैं जो आचार्य, प्रवर्तक या संघप्रमुख पद पर नहीं रहे किन्तु उच्चकोटि के जिनशासन सेवक रहे हैं उनके विषय में जो जानकारी मिलती है उसको संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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