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________________ ४०४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री रुगनाथजी आपकी जन्म-तिथि उपलबध नहीं होती है और न ही जन्म-स्थान के विषय में जानकारी मिलती है। आपके पिताजी का नाम श्री धर्मशाह और माता का नाम श्रीमती पद्मावती था। वि०सं० १८०० या १८०१ में पूज्य श्री खेमाजी के सानिध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की । आप एक तपस्वी मुनि थे। आपने औरंगाबाद के भगुशाहजी के स्थानक में पाँच बार दीर्घ तपस्या की थी१. ३२ दिन की, २. ३६ दिन की, ३.३७ दिन की, ४.४० दिन की, ५. ४० दिन की। इसके अतिरिक्त भी आपने विभिन्न तप किये- गंज ईदगाह में ३२ दिन की तपस्या, पैठ खराड़ी में मासखमण, सेख्यानारी में १० दिन व १८ दिन, हिवरापुर में १५ दिन व अठाई, बराड़देश के बालाजीपुर पैठ में ३१ का थोक, जालणा में चार थोक-३१ दिन का, ३२ दिन का, ३६ दिन का और ४५ दिन का तप किया। वि०सं० १८१६ का चातुर्मास आपने जालणा में किया। वहीं आपके साथ उदाजी स्वामी, श्री माधवजी और श्री गंगारामजी का भी चातुर्मास था । वि०सं० १८१६ कार्तिक शुक्ला तृतीया दिन मंगलवार को आपने संथारा ग्रहण कर लिया। एक मास के अनशन के पश्चात् वि० सं० १८१६ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री भगाजी आपकी जन्म-तिथि के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है। आपका जन्म खरिया ग्राम के निवासी श्री गिरधारीलालजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम सामांबाई था। आपके जन्म के पश्चात् आपके माता-पिता खरिया ग्राम से पेटलावद आ गये। ऐसी जनश्रुति है कि बाल्यकाल से ही बालक भगाजी बेले-बेले पारणा की तपश्चर्या करते थे, गर्म पानी पीते थे और गर्मी में आतापना लेते थे। आपके दो दीक्षा वर्ष मिलते हैं- वि०सं० १८२५ और वि०सं०१८२६ । पूज्य श्री मयाचन्दजी के सानिध्य में आपकी दीक्षा हुई। लगभग २९ वर्ष तक संयमपर्याय की आराधना की। वि०सं० १८५४ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री दानाजी आपके जन्म-स्थान, जन्म-तिथि, दीक्षा-तिथि आदि का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। आपके पिताजी का नाम श्री सूरतसिंह और माता का नाम श्री मती चैनादेवी था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि वि० सं० १८६९ में रतलाम, उज्जैन और सीतामह शाखा के वरिष्ठ मुनियों के बीच पैदा हुए विवाद को सुलझाने के लिए पाँच सदस्यों की एक समिति बनी थी। उस समिति में मनि श्री दानाजी स्वामी भी थे। वि० सं० १८७८ आश्विन कृष्णा अमावस्या को चौदह दिन के संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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