SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास - मुनि श्री ज्ञानचन्दजी और उनकी परम्परा पूज्य श्री जीवराजजी के बाद मुनि श्री ज्ञानचन्दजी संघ के प्रमुख हुए। आपका जन्म मध्यप्रदेश के बड़ोद ग्राम के महेता कुल में हुआ। आपने पूज्य श्री जीवराजजी के पास वि०सं० १९१५ में दीक्षा ग्रहण की। कहीं-कहीं वि० सं० १९१६ में दीक्षित होने का उल्लेख भी मिलता है। दीक्षा ग्रहण करने के बाद आप मालवा से मारवाड़ की ओर विहार कर गये। वि०सं० १९४७ में बीकानेर में आपके चातुर्मास का उल्लेख मिलता है। आप प्रतिवर्ष एक मासखमण करते थे । वि०सं० १९४७ में समाधिपूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। आपके कई शिष्य हुए किन्तु छः शिष्यों के नाम उपलब्ध होते हैं-मुनि श्री गेंदालालजी (नलखेड़ा), मुनि श्री लखमीचन्दजी (जोधपुर), मुनि श्री चिमनालालजी (भोजपुर), मुनि श्री मन्त्रालालजी (नलखेड़ा) मुनि श्री जसीरामजी (हरसाणा), मुनि श्री दयालचन्दजी (हरियाणा)। इनके अतिरिक्त श्री किशनलालजी का नाम भी आपके शिष्य के रूप में उपलब्ध होता है। मुनि श्री मगनलालजी आपके आठवें शिष्य थेऐसा उल्लेख मिलता है। इससे ऐसा लगता है कि आपके आठ शिष्य तो रहे ही होंगे. किन्तु इससे अधिक भी सम्भव है। इन शिष्यों में से मनि श्री गेंदालालजी और उनके शिष्य श्री रखबचन्दजी, श्री पन्नालालजी और श्री पूरणमलजी मालवा में ही रहे। पूज्य गेंदालालजी ने स्थिरवास शाजापुर में किया था और शाजापुर में ही उनका स्वर्गवास हआ। इस परम्परा की आचार-मर्यादा भी यही निर्धारित हई थी। बाबाजी मुनि श्री पूर्णमलजी, मनि श्री इन्द्रमलजी, मुनि श्री मोतीलालजी आदि सन्तमण्डल मुख्यतः शाजापुर, आगर, डग, बडौद आदि क्षेत्र में विचरण करता रहा। सादड़ी सम्मेलन में यह समुदाय श्रमण संघ में सम्मिलित हो गया, किन्तु बाद में पं० मुनि श्री समरथमलजी के साथ रहा। मुनि श्री पूरणमलजी मालवा में 'बाबाजी महाराज' के नाम से जाने जाते थे। मुनि श्री पन्नालालजी के शिष्य मुनि श्री इन्द्रमलजी हुए। श्री इन्द्रमलजी के शिष्य श्री चाँदमलजी, श्री रतनलालजी एवं श्री मोतीलालजी हुए। मुनि श्री मोतीलालजी कुशस्थला (ढूढ़ार) निवासी थे। वि०सं० २०१७ में सनवाड़ (मेवाड) में आपका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। आपके गुरुभाई मुनि श्री उत्तमचन्दजी के शिष्य मुनि श्री लालचन्दजी और उनके शिष्य सागरमलजी, मुनि श्री समरथमलजी की आज्ञा में विचरण करते थे। उधर मुनि श्री ज्ञानचन्दजी के आठवें शिष्य मुनि श्री मगनलालजी मारवाड़ में विचरण करने लगे, फलत: उनका संघ 'ज्ञानचन्द्र सम्प्रदाय' के नाम से प्रख्यात हुआ। मुनि श्री चुन्नीलालजी, मुनि श्री केवलचन्दजी और मुनि श्री रतनचन्दजी आदि इस सम्प्रदाय के अग्रणी संत थे। मुनि श्री ज्ञानचन्दजी की यह शिष्य परम्परा बाद में मारवाड़ में मुनि श्री रतनचन्दजी की सम्प्रदाय के नाम से भी जानी जाने लगी। तदुपरान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy