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________________ आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा ४०१ आपके दो शिष्य थे - मुनि श्री अचलदासजी और मुनि श्री धनचन्द्रजी । अचलदासजी के दो शिष्य थे - मुनि श्री मन्नालालजी और मुनि श्री मोतीलालजी । इसी प्रकार मुनि श्री धनचन्द्रजी के दो शिष्य थे - मुनि श्री भैरवजी और मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी। इस परम्परा में मुनि श्री रामरतन जी के बाद कोई आचार्य नहीं हुये। मुनि श्री चम्पालालजी को आचार्य पद मिला, किन्तु वे रतलाम शाखा के आचार्य बन गये। मुनि श्री चम्पालालजी का रतलाम शाखा का आचार्य बनना यह प्रमाणित करता है कि रतलाम शाखा और उज्जैन शाखा दोनों की मान्यताओं में कोई भिन्नता नहीं थी । उज्जैन शाखा जो मालवा शाखा की मूल शाखा है, में मुनि श्री केशरीमलजी के बाद मुनि श्री धनचन्दजी संघ के प्रमुख हुए। मुनि श्री धनचन्दजी के बाद श्री भैरव मुनि हुए। इनके बाद शिष्य परम्परा नहीं चली। इस प्रकार उज्जैन शाखा भी भैरवमुनिजी के साथ समाप्त हो गई। केवल 'रतलाम शाखा' और 'शाजापुर शाखा' वर्तमान काल तक जीवित है। श्री गंगारामजी की शाजापुर शाखा मालवा की उज्जैन शाखा के पाँचवें आचार्य श्री नरोत्तमदासजी के एक शिष्य मुनि श्री गंगारामजी हुए जिनकी शिष्य परम्परा 'शाजापुर शाखा' के रूप में जानी जाती है । किन्तु मुनि श्री गंगारामजी से ही यह शाखा अलग हुई या बाद में अलग हुई, इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता है। इसका समाधान करते हुये श्री उमेशमुनि जी लिखते हैं - 'मुनि श्री गंगारामजी के शिष्य श्री जीवराजजी के समय तक यह शाखा अलग रूप से प्रतिष्ठित नहीं हुई थी। उज्जैन शाखा के प्रमुख की आज्ञा ही मान्य रहती थी, परन्तु परोक्ष रूप से अपने कुल के मुख्य को विशेष महत्त्व देने की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी ।' यही कारण है कि पूज्य गंगारामजी की परम्परा शाजापुर शाखा के नाम से जानी जाती है। मुनि श्री गंगारामजी के जीवन चरित्र के विषय में कोई विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री जीवराजजी मुनि श्री गंगारामजी के पश्चात् आप अपने संघ के प्रमुख हुए। आपके विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आपकी जन्म तिथि क्या है? आपका जन्म कहाँ हुआ, आपकी दीक्षा कब हुई ? यह ज्ञात नहीं है। आप मुनि श्री गंगारामजी के शिष्य थे इतनी जानकारी उपलब्ध होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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