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________________ ३९१ धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं आचार्य श्री मोतीलालजी आपका जन्म वि० सं० १९४३ में ऊंटाला (बल्लभनगर) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री घूलचन्द्रजी और माता का नाम श्रीमती जड़ावादेवी था। वि०सं० १९६० मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी को १७ वर्ष की आयु में श्री एकलिङ्गदासजी के श्री चरणों में सनवाड़ में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी के स्वर्गवास के पश्चात् वि०सं० १९९३ ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया को सरदारगढ़ में आप मेवाड़ चतुर्विध संघ द्वारा आचार्य पद पर विराजित किये गये। आपका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि राजकरेड़ा के राजा श्री अमरसिंहजी आपके उपदेशों से प्रभावित होकर पूरे चातुर्मास में अपने हाथों में कोई शस्त्र धारण नहीं किया। आपके जीवन से अनेक चामत्कारिक घटनायें जुड़ी हैं जिनका विवेचन विस्तारभय से नहीं किया जा रहा है। वि०सं० २००९ में सादड़ी में आयोजित बृहत्साधु सम्मेलन में आपने अपने आचार्य पद का त्याग कर दिया और नवगठित श्रमण संघ में सम्मिलित हो गये। श्रमण संघ बनने पर आपने संघ के मन्त्री पद का निर्वहन बड़े ही सूझ-बूझ के साथ किया। आपने जीवन के अन्तिम २२ वर्ष तक मेवाड़ सम्प्रदाय के शासन को संचालित किया और ६ वर्षों तक श्रमण संघ के मन्त्री पद का निर्वहन किया। अन्तिम ५ वर्ष आप देलवाड़ा में स्थिरवास के रूप में बिताया। वि० सं० २०१५ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को सायं ६.४५ बजे आपका स्वर्गवास हो गया। पंजाब में रावलपिण्डी (वर्तमान में पाकिस्तान में), महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, आदि तथा दक्षिण के कुछ प्रदेश आपका विहार क्षेत्र रहा है। मुनि श्री अम्बालालजी और मुनि श्री भारमलजी आपके प्रमुख शिष्य थे । मुनि श्री भारमलजी आपका जन्म वि०सं० १९५० में मालवी जक्शन के निकट सिन्दू कस्बे में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भैरुलालजी बड़ाला व माता का नाम श्रीमती हीराबाई था। २० वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९७० में पूज्य आचार्य श्री मोतीलालजी के सान्निध्य में थामला ग्राम में आपने दीक्षा धारण की। ४८ वर्ष संयमपर्याय का पालन कर वि०सं० २०१८ श्रावण कृष्णा अमावस्या को राजकरेड़ा में आपका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हो गया प्रवर्तक श्री आम्बालालजी आपका जन्म मेवाड़ के थामला में वि० सं० १९६२ ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया मंगलवार को हुआ। नाम हम्मीरमल रखा गया। छ: वर्ष बाद जब आप अपने चाचा के यहाँ मावली आ गये तब आपका नया नाम रखा गया- अम्बालाल। आपके पिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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