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________________ ३९२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास का नाम सेठ किशोरीलालजी सोनी व माता का नाम श्रीमती प्यारीबाई था। हथियाना में आचार्य श्री मोतीलालजी से आपका समागम हुआ। मुनि श्री भारमलजी आपके ममेरे भाई थे। वि०सं० १९८२ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी दिन सोमवार को भादसोड़ा से दस मील दूर मंगलवाड़ में आचार्य श्री मोतीलालजी के हाथों आप दीक्षित हुए। मंगलवाड़ में आपकी छोटी दीक्षा हुई। छोटी दीक्षा के सात दिन बाद भादसोड़ा में आपकी बड़ी दीक्षा हुई। दीक्षोपरान्त आपने थोकडों व शास्त्रों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। रचनात्मक कार्यों में आपकी विशेष रुचि थी। सनवाड़ में भगवान महावीर के २५वें निर्वाण शताब्दी के अवसर पर २५०० व्यक्तियों को आपने मांस-मदिरा का त्याग करवाया। आप श्रमण संघ के प्रवर्तक पद के अतिरिक्त भी कई पदवियों से विभूषित थे, जैसे- 'मेवाड़ मंत्री', 'मेवाड़ संघ शिरोमणि', 'मेवाड़ मुकुट' 'मेवाड़ के मूर्धन्य संत', 'मेवाड़रत्न', 'मेवाड़ गच्छमणि', 'मेवाड़ मार्तण्ड' आदि। आपका प्रथम चातुर्मास वि० सं० १९८३ में जयपुर व अन्तिम चातुर्मास वि०सं० २०५० में मावली जक्शन (राजस्थान) में हुआ। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बम्बई, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, आदि आपका विहार क्षेत्र रहा है। वि०सं० २०५१ (१५.१.१९९४) में फतेहनगर (मेवाड़) में आपका स्वर्गवास हो गया। श्रमण संघीय मंत्री श्री सौभाग्य निजी 'कुमुद' आपका जन्म ई०सन् १० दिसम्बर १९३७ मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी को आकोला (चित्तौड़गढ-राज.) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री नाथूलालजी गांधी व माता का श्रीमती नाथाबाई था। वि०सं० २००६ माघ पूर्णिमा (तदनुसार २ फरवरी १९५०) को प्रवर्तक श्री अम्बालालजी के कर-कमलों में कडिया (चित्तौड़गढ-राज०) में आपने आहती दीक्षा ग्रहण की । दीक्षोपरान्त आपने आगम, व्याकरण, न्याय, दर्शन, ज्योतिष आदि ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। १३ मई १९८७ के पूना सम्मेलन में आप श्रमण संघ के मंत्री पद पर विभूषित हुये। आप प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं के अच्छे जानकार हैं। अब तक आपने लगभग ३०-३५ ग्रन्थों का सफल लेखन/सम्पादन आदि किया है। आप स्थानकवासी समाज को एक मंच पर लाने हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। वर्तमान में यह परम्परा श्रमण संघ की एक ईकाई है। इस परम्परा में वर्तमान में मुनि श्री सौभग्यमुनिजी कुमुद के साथ मुनि श्री जयवर्द्धनजी तथा प्रवर्तक इन्द्रमुनिजी, श्री भगवतीमुनिजी, उपप्रवर्तक मदनमुनिजी और कोमलमुनिजी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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