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________________ वि० सं० १९८६ १९८७ १९८८ स्थान मसूदा (अजमेर) रेलमगरा बाघपुर रामपुरा उज्जैन लश्कर १९८९ १९९० १९९१ १९९२ १९९३ १९९४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास स्थान वि० सं० मालवी २००३ ऊंटाला २००४ लावा (सरदारगढ) २००५ देवगढ़ (मदारिया) २००६ पड़ासोली २००७ थामला २००८ सरदारगढ़ २००९ देलवाड़ा २०१० खमणोर सादड़ी २०१२ २०१३ सनवाड़ २०१४ सहाड़ा २०१५ नाई (उदयपुर) २०१६ बाघपुरा (झालावाड) २०१७ नाईनगर २०१८ कुंवारिया २०१९ २०११ गोगुन्दा १९९५ १९९६ १९९७ १९९८ १९९९ २००० २००१ २००२ नाई रामपुर चिंचपोकली (मुम्बई) मलाड (मुम्बई) बाधपुरा बनेड़िया राजकरेड़ा भीम कनकपुर पलानाकलां भादसौड़ा मुनि श्री जोधराजजी. आपका जन्म वि०सं० १९४० में देवगढ़ के निकटस्थ ग्राम तगड़िया में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री मोतीसिंहजी और माता का नाम श्रीमती चम्पाबाई था। बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। वि०सं० १९५६ में मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी को रायपुर में आप आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी के हाथों दीक्षित हुये और मुनि श्री कस्तूरचन्द्रजी के शिष्य कहलाये। मुनि श्री हस्तीमलजी ने अपनी पुस्तक 'आगम के अनमोल रत्न' में लिखा है कि आपने सायंकाल में १४ वर्षों तक उष्ण आहार ग्रहण नहीं किया। इसके अतिरिक्त आपने एकान्तर, बेला, तेला, पाँच, आठ आदि तपस्यायें भी की । ४२ वर्ष संयमपालन कर वि०सं० १९९८ आश्विन शुक्ला पंचमी शुक्रवार को कुंवारियाँ में आपका स्वर्गवास हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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