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________________ धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं ३८९ १९९३ ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया को मुनि श्री मोतीलालजी के आचार्य पद समारोह के दिन ही आप संघ के युवाचार्य मनोनीत हुये, किन्तु कुछ वैचारिक भिन्नता के कारण आचार्य श्री मोतीलालजी ने युवाचार्य पद को निरस्त कर दिया और आप श्री को सम्प्रदाय का भावी शासक मानने से इन्कार कर दिया। फलत: आपने संघ से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। यद्यपि आगे चलकर आपके शिष्य श्री हस्तीमलजी आदि श्रमण संघ में सम्मिलित हो गये । जहाँ तक मोतीलालजी के आचार्य बनने की बात है तो इस सम्बन्ध में मुनि हस्तीमलजी ने 'पूज्य गुरुदेव श्री माँगीलालजी : दिव्य व्यक्तित्व' नामक पुस्तक में लिखा है कि मुनि श्री मोतीलालजी ने जीवनपर्यन्त पूज्य पद लेने का त्याग कर रखा था। इसलिए आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी ने एक पत्र मुनि श्री माँगीलालजी को पूज्य पद देने के लिए अपने हस्ताक्षरों सहित लिखा था और साक्षी के रूप में महासती गोदावतीजी एवं नीमचवाले श्रावकों के हस्ताक्षर भी उस पत्र पर करवाये थे।ठीक इसके विपरीत इसी पुस्तक में यह वर्णन भी आया है कि आचार्य पद हेतु अन्तर्विरोध था, अत: आचार्य पद पर श्री मोतीलालजी और युवाचार्य पद पर मुनि श्री माँगीलालजी को निर्विरोध मनोनीत किया गया, किन्तु दीक्षा प्रसंग पर हजारों की भीड़ में मुनि श्री माँगीलालजी ने यह घोषणा की कि मैं युवाचार्य पद का आज सहर्ष परित्याग करता हूँ। इतना ही नहीं, भविष्य में मैं किसी प्रकार के पद को ग्रहण नहीं करूँगा। ये दोनो कथन एक-दूसरे के विपरीत प्रतीत होते हैं। अत: इन दोनों मान्यताओं के विषय में विवाद में न जाकर यही कहा जा सकता है कि आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी के पश्चात दो पट्ट परम्परा चली जिसमें एक परम्परा के आचार्य मोतीलालजी बने और दूसरी परम्परा के आचार्य श्री माँगीलाल जी बने। वर्तमान में दोनों परम्परायें श्रमण संघ में विलीन हो गयी हैं। वि० सं २०२०ज्येष्ठ शुक्लपक्ष में सहाड़ा में अचानक आपका (माँगीलालजी) स्वर्गवास हो गया। आपके तीन प्रमुख शिष्य हुये पण्डितरत्न श्री हस्तीमलजी, श्री पुष्करमुनिजी और श्री कन्हैयालालजी। आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की संक्षिप्त सूची इस प्रकार हैवि० सं० स्थान, वि० सं० देलवाड़ा १९८२ अकोला १९७९ रायपुर १९८३ ऊंटाला (बल्लभनगर) १९८० देवगढ़ (मदारिया) १९८४ सादड़ी १९८१ कुंवारिया १९८५ स्थान १९७८ रायपुर १. पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी म० अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ०- १८४ २. पूज्य गुरुदेव श्री मांगीलालजी म०: दिव्य व्यक्तित्व, पृ०- १६-१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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