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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास हुआ । आपके पिता का नाम श्री तिलोकचन्द्रजी गाँधी और माता का नाम श्रीमती धनादेवी था। ९ वर्ष की उम्र में वि०सं० १८७२ कार्तिक शुक्ला पंचमी के दिन आचार्य श्री नृसिंहदासजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा धारण की । आचार्य श्री नृसिंहदासजी के स्वर्गवास के पश्चात् मेवाड़ परम्परा के आचार्य के पाट पर आप समासीन हुये । आप एक कवि थे। आपकी कुछ रचनाएँ राजस्थानी शैली में उपलब्ध होती हैं जिनमें से एक है 'गुरुगुण स्तवन।' आप द्वारा वि०सं० १८८५ में लिखित हस्तप्रति भी प्राप्त होती है जो 'मुनि श्री अम्बालालजी म० अभिनन्दन ग्रन्थ' में प्रकाशित है।
आपने कुल ७० वर्ष संयमजीवन व्यतीत किये और ७९ वर्ष की अवस्था में १९४२ कार्तिक शुक्ला पंचमी को नाथद्वारा में आपका स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार एक ही तिथि कार्तिक शुक्ला पंचमी को जन्म, दीक्षा और देवलोकगमन होना विरले ही भव्यात्मा को प्राप्त होती है।
आपकी जन्म-तिथि के विषय में मुनि हस्तीमलजी मेवाड़ी' की यह मान्यता कि आपका जन्म वि०सं० १८८३ में हआ था प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि इस तिथि के अनुसार आपका स्वर्गवास वि० सं० १९६३ में मानना पड़ेगा, जो कि संगत नहीं है। इस सम्बन्ध में श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' का कथन समीचीन प्रतीत होता है । उनका कहना है कि वि० सं० १९४७ में पूज्य श्री एकलिंगदासजी की दीक्षा हुई तो क्या उस समय श्री मानमलजी स्वामी वहाँ उपस्थित थे। श्री मानमलजी स्वामी का स्वर्गवास १९४२ में हो चुका था, अत: उनकी उपस्थिति का प्रश्न ही नहीं उठता।'
यहाँ पट्ट परम्परा के विषय में यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि आचार्य श्री नृसिंहदासजी के पश्चात् उनके पाट पर मुनि श्री मानमलजी स्वामी आचार्य बनें- यह तथ्य श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' के अनुसार है, जबकि आचार्य श्री हस्तीमलजी ने 'जैन आचार्य चरितावली' में आचार्य श्री नृसिंहदासजी के पश्चात् आचार्य श्री एकलिंगदासजी को उनका पट्टधर स्वीकार किया है। मुनि श्री ऋषभदासजी के समय लिखी गयी संक्षिप्त और बड़ी पट्टावलियों में श्री मानजी स्वामी का कोई उल्लेख नहीं है। अत: ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि श्री मानजी स्वामी और तपस्वी श्री सूरजमलजी के संघाड़े अलग-अलग रहे हों। श्री मानमलजी स्वामी के बाद एक वर्ष तक संघ की बागडोर मुनि श्री ऋषभदासजी के पास रही- ऐसा भी उल्लेख मिलता है। मुनि श्री सूरजमलजी
___आपका जन्म वि० सं० १८५२ में देवगढ़ के कालेरिया ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री थानजी और माता का नाम श्रीमती चन्दूबाई था। वि० सं० १८७२ चैत्र
१. पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी म. अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ-१४४
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