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धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं ३५९ आचार्य श्री कस्तूरचन्दजी के पट्ट पर आसीन होनेवाले मुनि श्री भीकमचन्द्रजी के आचार्य पद ग्रहण करने की तिथि वि०सं० १९६० है। आचार्य श्री भीकमचन्दजी
आचार्य श्री जयमल्लजी की परम्परा में सातवें पट्टधर के रूप में मुनि श्री भीकमचन्दजी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आपका जन्म चौपड़ा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री रतनचन्दजी बरलोटा (मूथा) और माता का नाम श्रीमती जीवादेवी था। आपके दीक्षागुरु आचार्य श्री कस्तुरचन्दजी थे। वि० सं० १९६० में भाद्र पूर्णिमा को जोधपुर में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। श्री कानमलजी और श्री मनसुखजी आपके दो शिष्य थे। आपका स्वर्गवास वि०सं०१९६५ में वैशाख कृष्णा पंचमी को हुआ। कहीं-कहीं आपकी कुल आयु ६१ वर्ष बतायी गयी है। इस आधार पर आपकी जन्म-तिथि वि०सं० १९०४ मानी जा सकती है और इसी प्रकार दीक्षा-तिथि वि०सं० १९२० से वि०सं० १९२५ के आस-पास मानी जा सकती है, क्योंकि युवावस्था में उनके द्वारा दीक्षित होने का उल्लेख मिलता है। आचार्य श्री कानमलजी
आचार्य श्री भीकमचन्दजी के पश्चात् इस परम्परा में मुनि श्री कानमलजी आचार्य पद पर पदासीन हुए। मुनि श्री कानमलजी का जन्म वि० सं० १९४८ माघ पूर्णिमा को धवा ग्राम के निवासी श्री अंगराजजी पारिख की धर्मपत्नी श्रीमती तीजादेवी की कुक्षि से हुआ। वि०सं० १९६२ कार्तिक शुक्ला अष्टमी को आपने जोधपुर के महामंदिर में आचार्य श्री भीकमचन्दजी की निश्रा में दीक्षा स्वीकार की। वि०सं० १९६५ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को कुचेरा में आप आचार्य पद पर आसीन हुए। आपका व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली था। आप असाधारण प्रतिभा के धनी तथा आत्म-संयमनिष्ठ थे। आपके एक मात्र शिष्य मुनि श्री चैनमलजी थे। आपका स्वर्गवास वि०सं० १९८५ माघ कृष्णा पंचमी को हुआ। आचार्य श्री मिश्रीमलजी 'मधुकर'
वि० सं० १९८५ में कानमलजी की मृत्यु के पश्चात् वि० सं० १९८९ में पाली में पूज्य आचार्य श्री भूधरजी की सभी छ: शाखाओं का मुनि-सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें संघ को सुव्यवस्थित करने की दृष्टि से मुनि श्री हजारीमलजी को प्रवर्तक एवं मुनि श्री चौथमलजी को मंत्री पद पर नियुक्त किया गया। किन्तु मुनिजनों एवं श्रावकों में आचार्य की कमी महसूस हुई। इस कमी की पूर्ति के हेतु सभी लोगों की दृष्टि मुनि श्री मिश्रीमलजी 'मधुकर' पर गयी। वि०सं० २००४ में समारोहपूर्वक मुनि श्री मिश्रीमलजी 'मधुकर' को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। मुनि श्री मिश्रीमलजी 'मधुकर' का जन्म वि० सं० १९७० मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी के दिन
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