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________________ धर्मदासजी की परम्परा में उद्भूत गुजरात के सम्प्रदाय ३३३ ध्रांगधा एवं बोटाद सम्प्रदाय पूज्य मूलचंदजी स्वामी के पाँचवें शिष्य श्री विठ्ठलजी स्वामी थे। उनके शिष्य श्री भूषणजी मोरबी पधारे और उनके शिष्य श्री वशरामजी स्वामी मोरबी से ध्रांगध्रा पधारे और वहीं संघ की स्थापना की, किन्तु श्री निहालचन्दजी के बाद यह परम्परा समाप्त हो गयी। इसी परम्परा के श्री वशरामजी स्वामी के शिष्य श्री जसाजी किसी कारण वशात् बोटाद पधारे और तब से ध्रांगध्रा परम्परा बोटाद परम्परा के नाम से जानी जाने लगी। इस प्रकार श्री जसाजी बोटाद सम्प्रदाय के आद्य प्रवर्तक माने जा सकते हैं, किन्तु परम्परा श्री विट्ठलजी स्वामी से प्रारम्भ होती है। इस परम्परा के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है, अत: 'जैन आचार्य चरितावली' के आधार पर हम यहाँ पट्ट परम्परा प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री विठ्ठलजी स्वामी इस परम्परा के प्रथम आचार्य थे। उनके पश्चात् श्री हरखजी स्वामी संघ के अधिपति बने। श्री हरखजी स्वामी के पाट पर श्री भूषणजी स्वामी आसीन हुये। श्री भूषणजी स्वामी के पश्चात् श्री रूपचंजी स्वामी ने संघ की बागडोर संभाली। श्री रूपचंदजी स्वामी के पश्चात् श्री वशरामजी स्वामी उनके पाट पर पटासीन हुये। श्री वशरामजी स्वामी के पश्चात् श्री जसाजी स्वामी संघ के अधिपति बने। श्री जसाजी स्वामी के पाट पर श्री अमरसिंहजी स्वामी विराजित हये। श्री अमरसिंहजी स्वामी के पश्चात् श्री मूलचंदजी स्वामी संघ के प्रमुख हुये। . वर्तमान में संघनायक पं० रत्न श्री नवीन मुनिजी हैं। इस सम्प्रदाय में वर्तमान में कुल ५६ सन्त-सतियाँजी हैं जिनमें ४ सन्तजी हैं और ५२ सतियाँजी हैं। सन्तों के नाम इस प्रकार हैं- मुनि श्री अमीचंदजी, मुनि श्री शैलेशमुनिजी, मुनि श्री जयेशमुनिजी। सायला सम्प्रदाय आचार्य श्री मूलचन्दजी के प्रथम शिष्य थी गुलाबचन्दजी स्वामी के शिष्य हीराजी स्वामी के गुरुभाई मुनि श्री नागजी स्वामी सायला पधारे ओर सायला सम्प्रदाय की स्थापना की। सायला सम्प्रदाय के विषय में कोई विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। अत: 'जैन आचार्य चरितावली' के आधार पर पट्ट-परम्परा का संक्षिप्त रूप इस प्रकार हैश्री गुलाबचन्दजी स्वामी के पट्ट पर श्री बालचन्दजी स्वामी विराजित हुये। श्री बालचन्दजी स्वामी के पश्चात् श्री नागजी स्वामी ने संघ की बागडोर सम्भाला। श्री नागजी स्वामी के पट्ट पर श्री मलजी स्वामी विराजित हये। श्री मूलजी स्वामी के पश्चात् श्री देवचन्दजी स्वामी पदासीन हुये। श्री देवचन्दजी स्वामी के पट्ट पर श्री मेधराजजी आसीन हुये। श्री मेघराजजी के पश्चात् श्री सन्धजी स्वामी ने संघ का दायित्व निर्वहन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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