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________________ '२६६ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मत्रालालजी, युवाचार्य श्री काशीरामजी, उपाध्याय श्री आत्मारामजी, पूज्य श्री नागचन्द्रजी, प्रवर्तक श्री ताराचन्दजी, पूज्य श्री छगनलालजी (खम्भात संघाड़ा) आदि सन्त व बहुसंख्यक श्रावक-श्राविकायें उपस्थित थीं। दीक्षोपरान्त आपने धर्मशास्त्र व संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। काव्य-साहित्य में आपकी विशेष रुचि थी। मारवाड़, पंजाब, मेवाड़ मालवा, संयुक्त प्रान्त आदि आपका विहार क्षेत्र रहा। वि०सं० १९९४ का आपका चातुर्मास मुनि श्री मोहनऋषिजी तथा पं० मनि श्री कल्याणऋषिजी के साथ सम्पन्न हुआ। वि०सं० २००३ का चौमासा औरंगाबाद में किया। तत्पश्चात् अमरावती और बैतूल में चौमासा सम्पन्न कर सादड़ी में आयोजित बृहत् साधु सम्मेलन में भाग लेने के लिए आचार्य आनन्दऋषिजी की सेवा में उपस्थित हुये। सम्मेलन के पश्चात् आपका चातुर्मास चिंचपोकली (बम्बई) में सम्पन्न हुआ। इसी प्रकार वि० सं० २०११ व २०१२ का चातुर्मास क्रमश: रामपुर व बालाघाट में सम्पन्न हुआ। बाद में मुनिमर्यादा से च्युत हो गये। आपने विभिन्न साहित्यों की रचना की जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- चुनिंदा कथानुयोग संग्रह, नूतन भानु संग्रह, सामायिक प्रतिक्रमण, आत्ममरण, सामूहिक प्रार्थना संग्रह, पद्मावती आदि आलोचना, श्री अमोल आत्मस्मरण, सती चन्दनबाला आदि। मुनि श्री कल्याणऋषिजी. आपका जन्म वि०सं० १९६६ में अहमदनगर के बरखेड़ी में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सोनीबाई तथा पिता का नाम श्री हजारीमलजी चोपड़ा था। आपके बचपन का नाम भानुचन्द्र था। १५ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९८१ में कड़गाँव में आगमोद्धारक मुनि श्री अमोलकऋषिजी के सानिध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आप मुनि श्री कल्याणऋषिजी के नाम से पहचाने जाने लगे। आपको ‘दशवैकालिक' व 'उत्तराध्ययन' पूर्णत: कंठस्थ था। आप संस्कृत व्याकरण और साहित्य के अच्छे जानकार थे। पूना, घोड़नदी, अहमदनगर, मनमाड, बरार, महेन्द्रगढ़, मारवाड़ (सादड़ी), भोपाल, दिल्ली, धुलिया, भुसावल, जलगाँव, बोदवड़ आदि आपके चातुर्मास स्थल हैं। वि० सं० १९९९ में पाथर्डी में माध कृष्णा षष्ठी के दिन पण्डितरत्न श्री आनन्दऋषिजी को आचार्य पद की चादर आपके द्वारा ही ओढ़ाई गयी। वि०सं० २००० का चातुर्मास पूर्ण कर आपने हैदराबाद, रायचूर, बैंगलोर व मद्रास नगरों में चौमासे किये। शास्त्रोद्धारक मुनि श्री अमोलकऋषिजी के स्मरणार्थ श्री अमोल जैन ज्ञानालय नामक संस्था की स्थापना के पीछे आपकी ही प्रेरणा रही है। मुनि श्री भानुऋषिजी आपका जन्म वि०सं० १९८५ में पूर्व खानदेश के तलाई नामक ग्राम में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती मंडूबाई तथा पिता का नाम श्री सांडू सेठ था। आप जाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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