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________________ २६७ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा से स्वर्णकार थे। वि०सं० १९९९ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया दिन मंगलवार को मुनि श्री हरिऋषिजी की नेश्राय में आप मनमाड में दीक्षित हुये । दीक्षोपरान्त तीन वर्ष तक मुनि श्री हरिऋषिजी की सेवा में रहे । तत्पश्चात् पूज्य श्री आनन्दऋषिजी की सेवा में उपस्थित होकर संस्कृत- प्राकृत, हिन्दी, उर्दू आदि भाषा, 'लघुसिद्धान्तकौमुदी', 'प्रमाणनयतत्त्वालोक', 'मुक्तावली' आदि का अध्ययन किया । आप द्वारा सम्पादित 'श्रमण वाणी' और 'प्रभातपाठ' नाम की दो पुस्तकें प्रकाशित हैं। कल्याणऋषिजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री रामऋषिजी आपका जन्म वि०सं० १९८२ में गधनापुर में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सुभद्राबाई तथा पिता का नाम श्री छोटेलाल संखवाल पटवा था। आपका जन्म वैष्णव परिवार में हुआ था। फिर भी आपने मुनि श्री कल्याणऋषिजी के कर-कमलों से वि०सं० १९९३ में धुलिया में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने 'दशवैकालिक', ‘उत्तराध्ययन’, ‘नन्दीसूत्र’ आदि ग्रन्थों को कंठस्थ किया। 'लघुसिद्धान्तकौमुदी', 'सुभाषितरत्न -सन्दोह’, ‘प्राकृतमार्गोपदेशिका', 'अमरकोष' आदि ग्रन्थों का भी तलस्पर्शी अध्ययन किया, किन्तु आपके जीवन में दीपक तले अंधेरा वाली घटना घटित हो गयी । वि०सं० २००० में दूसरे को संयम की राह पर लानेवाला ज्ञानी अज्ञानी की भाँति स्वयं संयममार्ग से च्युत हो गया । सेवाभावी मुनि श्री रायऋषिजी आपका जन्म वि०सं० १९४९ में धुलिया के फाराणा कस्बे में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती धन्याबाई व पिता का नाम श्री टीकारामजी भावसार था। ४९ वर्ष की अवस्था में मुनिश्री कल्याणऋषिजी की निश्रा में वि० सं० १९९८ की आषाढ़ कृष्णा षष्ठी के दिन वाधली में आप दीक्षित हुये । मुनि श्री भक्तिऋषिजी आपका जन्म मारवाड़ के पादू में हुआ । जन्म तिथि उपलब्ध नहीं होती है। आपकी माता का नाम श्रीमती सुधाबाई व पिता का नाम श्री पूनमचंद रांका था । वि० सं० २००० में ३० वर्ष की आयु में आप मुनि श्री कल्याणऋषिजी के कर-कमलों से दीक्षित हुये। तप साधना के प्रति आपकी विशेष रुचि थी। आपने अपने जीवन में १५ से भी अधिक मासखमण किये। मुनि श्री चन्द्रऋषिजी आपका जन्म वि०सं० १९७४ में हुआ। आप मुनि श्री मुलतानऋषिजी के संसारपक्षीय पुत्र थे। आपकी माता का नाम श्रीमती दराड़ी बाई था। वि० सं० १९८२ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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