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________________ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा २६५ त्रयोदशी को पूज्य श्री अमोलकऋषिजी के सान्निध्य में शुजालपुर में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपकी उम्र ९ वर्ष की थी। आगम ज्ञान के साथ-साथ आप हिन्दी, उर्दू आदि भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। स्वभाव से आप सरल एवं शान्त थे। मालवा, बरार और खानदेश आदि आपके विहार क्षेत्र रहे। वि०सं० १९९६ चैत्र शुक्ला अष्टमी को दुर्ग (म०प्र०) के कुसुम कासा क्षेत्र में आपका स्वर्गगमन हुआ। मुनि श्री मुल्तानऋषिजी आपका जन्म वि०सं० १९५२ में अहमदनगर के मीरी में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सदाबाई व पिता का नाम श्री खुशालचन्दजी मेहर था। वि०सं० १९८२ में ३० वर्ष की अवस्था में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन घोड़नदी में शास्त्रोद्धारक पं० मुनि श्री अमोलकऋषिजी के सानिध्य में आप दीक्षित हुए। साधु आचार निरूपक के रूप में जाना जानेवाला ग्रन्थ 'दशवैकालिक' आपको पूरा कंठस्थ था। मालवा, मारवाड़, पंजाब आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। श्री अमोल जैन ज्ञानालय के निर्माण में परोक्ष रूप से आपका सहयोग रहा। आपके दीक्षित होने के पश्चात् आपकी धर्मपत्नी और पुत्र दोनों ने ही संयममार्ग अपना लिया जो क्रमश: महासती इन्दुकुंवरजी और मुनि श्री चन्द्रऋषिजी के नाम से जाने जाते हैं। मुनि श्री. जयवन्तऋषि व मुनि श्री शान्तिऋषिजी आप दलोट (मालवा) के निवासी थे। आप दोनों मुनिद्वय संसारपक्षीय पिता-पुत्र हैं। वि०सं० १९८८ मार्गशीर्ष पंचमी के दिन मुनि श्री अमोलकऋषिजी के मुखारविन्द से आप दोनों धुलिया में दीक्षित हुए। आचार्य श्री अमोलकऋषिजी के सानिध्य में आपने शास्त्रों का अध्ययन किया। तदुपरान्त आप मेवाड़ प्रान्तीय मुनि श्री मोतीलालजी की सेवा में रहने लगे। मुनि श्री. फतहऋषिजी आपका जन्म खानदेश के अमलनेर ग्राम में हुआ। वि०सं० १९८९ मार्गशीर्ष एकादशी के दिन मुनि श्री अमोलकऋषिजी के सानिध्य में शुजालपुर में आप दीक्षित हुए। आपने अनेक थोकड़े कंठस्थ किये थे। पंजाब, मारवाड़, मालवा, मेवाड़ आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। मुनि श्री हरिऋषिजी. आपका जन्म वि०सं० १९७० में खानदेश के मारोड़ ग्राम में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती काशीबाई तथा पिता का नाम श्री बारकु सेठ था। आप जन्म से वैष्णव परिवार से सम्बन्धित थे। शास्त्रोद्धारक पं० मुनि श्री अमोलकऋषिजी की निश्रा में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। आपके दीक्षा समारोह में पूज्य श्री जवाहरलालजी, पूज्य श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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