SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास समदड़िया परिवार में हुआ था। आप जाति से ओसवाल थे। वि० सं० १९७१, फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी, दिन शनिवार को पण्डितरत्न मुनि श्री अमोलकऋषिजी के सानिध्य में मुनि श्री उदयचन्दजी के साथ दीक्षित हुए। करमाला, घोड़नदी,पूंज, अहमदनगर धुलिया आपका विहार स्थल रहा। आँख की रोशनी कम हो जाने के कारण आप धुलिया में ही स्थिरवास हो गये। वि० सं० १९८६ में आप स्वर्गस्थ हुए। मुनि श्री उदयऋषिजी. आपका जन्म मारवाड़ के पाली नगर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री गम्भीर मलजी सुराणा था। आप मुनि श्री राजऋषिजी के साथ वि० सं० १९७१ में ही दीक्षित हुए। आपने अपने संयमपर्याय में अठाई, पन्द्रह, इक्कीस और इक्कावन दिन तथा कई मासखमण की तपस्यायें की। चातुर्मास आदि कार्यों में आप गुरुदेव के सलाहकार हुआ करते थे। शारीरिक दुर्बलता के कारण हिंगोना (खानदेश) में आपका स्थिरवास हो गया। हिंगोना में ही आप स्वर्गवास को प्राप्त हुये। इसके अतिरिक्त कोई ऐतिहासिक तिथि की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री मोहनऋषिजी आपका जन्म अहमदनगर के तेलकुड गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री भीवराजजी गूगलिया और माता का नाम श्रीमती सिणगारबाई था। पिता के विशेष आग्रह पर आगमोद्धारक मुनि श्री अमोलकऋषिजी ने आपको दीक्षार्थ स्वीकार किया। वि० सं० १९७२ फाल्गुन शुक्ला तृतीया के दिन हैदराबाद में बड़े समारोह में आप दीक्षित हुए। इस प्रकार आप मोहनलाल से मनि मोहनऋषि बन गये। दीक्षोपरान्त आपने 'दशवैकालिक तथा 'उत्तराध्ययन' कंठस्थ किया । ऐसा कहा जाता है कि प्रतिदिन आप पाँच गाथाएँ कंठस्थ करते थे। एक घण्टा थोकड़ों का अभ्यास करते थे और शेष समय में संस्कृत व प्राकृत की शिक्षा ग्रहण करते थे। 'लघुसिद्धान्तकौमुदी', 'प्राकृत मार्गोपदेशिका', 'रघुवंश', 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' और 'स्याद्वादमंजरी' आदि ग्रन्थों का आपने गहन अध्ययन किया था। धार्मिक छन्द, स्तोत्र आदि भी आपको कंठस्थ थे। वि०सं० १९७६ में आप एक भक्तभोजी हो गये अर्थात् सब आहार पानी में इकट्ठा घोलकर पी लेते थे। इसी वर्ष फाल्गुन शुक्ला सप्तमी के दिन अकस्मात आप ज्वर वेदना से ग्रसित हो गये। चैत्र वदि सप्तमी के रोज प्रात: चार बजे गुरुवर्य पण्डितरत्न मुनि श्री अमोलकऋषि के मुखारविन्द से चार शरण नमोकार मंत्र, नमोत्थुणं आदि पाठ का श्रवण करते हुए ब्रह्ममुहूर्त में आपने स्वर्ग के लिए प्रयाण किया। मुनि श्री अक्षयऋषिजी. ___आपका जन्म मेवाड़ के शाहपुरा ग्राम में वि०सं० १९८० में हुआ था। आपके पिताजी का नाम डांगी गोत्रीय श्री दलेलसिंहजी था। वि०सं० १९८९ की मार्गशीर्ष शुक्ला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy