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________________ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा २५९ पालकर ६५ वर्ष की अवस्था में पिपलौदा में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी दिन शानिवार को रात्रि के लगभग १० बजे संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ। मुनि श्री ओंकारऋषिजी. आपका जन्म मालवा के दलोट ग्राम में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री भैरुलालजी था और आप पंडितरत्न श्री अमीऋषिजी के संसारपक्षीय भाई थे। दीक्षोपरान्त आप मालवा विचरते हुए अपने गुरुवर्य की सेवा में संलग्न रहे। आपके एक शिष्य हुएश्री माणकऋषिजी। वि० सं० १९८३ के चैत्र माह में आप स्वर्गस्थ हुये । मुनि श्री छोगाऋषिजी आप पण्डितरत्न श्री अमीऋषि के शिष्य थे। आपके विषय में इसके अतिरिक्त कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री माणकऋषिजी आपका जन्म मालवा के प्रतापगढ़ जिलान्तर्गत सुहागपुर ग्राम में वि०सं० १९३८ के फाल्गुन महीने में हुआ । आपके पिता का नाम श्री तुलसीदास और माता का नाम श्रीमती केशरबाई था। युवावस्था में आपका सम्पर्क मुनि श्री अमीऋषिजी से हुआ। उनके सदुपदेश ने आपके जीवन को साधुमार्ग की ओर मोड़ दिया। वि० सं० १९७० ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को खाचरौंद में मुनि श्री अमीऋषिजी के मंगलवचनों से आप दीक्षित हए और मुनि श्री ओंकारऋषिजी की नेश्राय में शिष्य बने। दीक्षोपरान्त आपने मुनि श्री अमीऋषिजी से २५ आगमों का अध्ययन किया तथा 'दशवैकालिकसूत्र' और 'उत्तराध्ययनसूत्र' को कण्ठस्थ कर लिया । स्वभाव से आप अत्यन्त ही शान्त एवं सरल थे। आपकी व्याख्यान शैली अनुपम थी। मालवा आपका मुख्य विहार क्षेत्र रहा। वि०सं० १९९३ में आप मुनि श्री अमोलकऋषिजी के साथ धुलिया में थे। आचार्य श्री अमोलकऋषिजी के परलोकगमन के पश्चात् आपने मुनि श्री कल्याणऋषिजी के साथ खानदेश में विहार किया। फिर शारीरिक अस्वस्था के कारण आपने धुलिया में स्थिरवास किया। स्थिरवास के समय श्रीकान्तिऋषिजी और श्री भक्तिऋषिजी आपकी सेवा में उपस्थित थे। आपके एकमात्र शिष्य श्री उम्मेदऋषिजी हुये। आपके सम्बन्ध में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। देवजीऋषिजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री प्रतापऋषिजी. आपका जन्म वि०सं० १९४७ में अजैन गुर्जर परिवार में हुआ। वि० सं० १९७० मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में आपने मुनि श्री देवजीऋषिजी से जैन श्रमण दीक्षा अंगीकार की। सात वर्ष के संयमपर्याय के साथ वि० सं० १९७७ की पौष कृष्णा तृतीया को दादर (बम्बई) में आपका स्वर्गवास हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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