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________________ २६० मुनि श्री तुलाऋषिजी स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आपका जन्म वि०सं० १९४९ में खानदेश के फैजपुर ग्राम में हुआ। वि०सं० १९७९ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को ३० वर्ष की आयु में भुसावल में तपस्वी मुनि श्री देवजीऋषिजी के सान्निध्य में आप दीक्षित हुए। तपाराधना में आपकी विशेष रुचि थी । आपने अपने संयम जीवन में एकान्तर, बेला, तेला, पंचोला, अठाई, ग्यारह, पन्द्रह आदि की कई तपस्यायें की थीं। आप जहाँ कहीं भी पधारते आरम्भ के कुछ दिनों तक २५ दया पालने की प्रतिज्ञा लेनेवाले गृहस्थ के घर ही आहार पानी ग्रहण करते थे। कुछ समयोपरान्त ५० दिन और फिर १०० दिन दया पालने की प्रतिज्ञा दिलवाते थे । वि०सं० २००५ में जब आपका चातुर्मास टीटवा ग्राम में था, आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो गये और आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री मिश्रीऋषिजी आपका जन्म मारवाड़ के लूसरा ग्राम में वि० सं० १९५२ में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती आशाबाई व पिता का नाम श्री जेठमलजी सुराणा था । वि० सं० १९९४ मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ४२ वर्ष की अवस्था में हींगनघाट (म०प्र०) में मुनि श्री देवजीऋषिजी के समीप आपने आर्हती दीक्षा प्राप्त की। पूज्य गुरुदेव का स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् आप तथा मुनि श्री रामऋषिजी खरवंडी कासार (दक्षिण) में मुनि श्री आनन्द ऋषिजी की सेवा में उपस्थित हो गये । वि० सं० २००० का चातुर्मास आपने मुनि श्री आनन्दऋषि के साथ सम्पन्न किया । तत्पश्चात् आप मुनि श्री प्रेमऋषिजी जो अस्वस्थ हो गये थे, की सेवा में मुनि श्री आनन्दऋषिजी की आज्ञा से पाथर्डी (अहमदनगर) पधारे। वहाँ से आप मुनि श्री रामऋषिजी तथा श्री जसवन्तऋषिजी के साथ विहार करते हुए वार्सी पधारे जहाँ पूज्य श्री आनन्दऋषिजी का दर्शन किया और चातुर्मास हेतु लातूर की ओर विहार किया। वहाँ से विहार कर जालना, देवल गाँव, किनगाँव, जट्टु, सेलू, कारंजा, दारवा, बोरी आदि क्षेत्रों में धर्मोपदेश देते हुए यवतमाल पधारे और मुनि श्री कालूऋषिजी की सेवा में संलग्न हो गये । वि० सं० २००२ का चातुर्मास आपने राजनांदगाँव में किया । चातुर्मास पूर्ण कर आपने कवर्धा की ओर विहार किया। बाद में आपने मुनि पर्याय का त्याग कर दिया और एक व्रती श्रावक जैसी चर्या स्वीकार कर ली। 1 मुनि श्री रामऋषिजी आपका जन्म कच्छ के पुनड़ी ग्राम में वि० सं० १९७४ में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती डमरबाई व पिता का नाम श्री पुनसीभाई संघवी था। आप वि० सं० १९९९ आषाढ़ कृष्णा चतुर्थी को पूज्य श्री देवऋषिजी के सान्निध्य में दीक्षित हुए। आप पूज्य श्री के संसारपक्षीय भतीजे थे। पूज्य श्री का स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् आपने मुनि श्री आनन्दऋषिजी की सेवा में रहकर आगमों का अध्ययन किया । इसी क्रम में लातूर चातुर्मास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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