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________________ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा २३३ वि०सं० १९९२ में होश्यारपुर में आप 'प्रसिद्ध-वक्ता' की पदवी से विभूषित हुए। वि० सं० २००२ ज्येष्ठ कृष्णा सप्तमी दिन शनिवार को आचार्य श्री काशीरामजी के स्वर्गवास के पश्चात् आप युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित हए और आचार्य श्री आत्मारामजी के सान्निध्य में वि०सं० २००३ से लेकर वि०सं० २००९ तक युवाचार्य पद पर आसीन हो अत्यन्त दीर्घदर्शिता एवं कुशलता के साथ इस पद का निर्वहन किया। वि०सं० २००९ (ई०सन् १९५२) के सादड़ी सम्मेलन में युवाचार्य पद का परित्याग कर दिया। उस सम्मेलन में प्रान्तीय आधार पर मंत्रीमण्डल व्यवस्था बनी और आप पंजाब प्रान्त के श्रमणसंघ के मंत्री नियुक्त किये गये। वि०सं० २०२० में अजमेर में अखिल भारतवर्षीय वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ' के शिखर सम्मेलन में आप प्रवर्तक पद पर सुशोभित हुये। आप एक उच्चकोटि के साहित्यकार और लेखक थे। गद्य और पद्य दोनों विधाओं में आपकी अच्छी पकड़ थी। आपकी कई रचनाएँ हैं जिनमें से कुछ प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित हैं। 'जैन रामायण', 'जम्बूकुमार', 'वीरमति जगदेव' आदि पद्य रचनाएँ हैं तथा 'महाभारत', 'तत्त्वचिन्तामणि', भाग-१,२,३, 'नवतत्त्वादर्श, धर्म-दर्शन आदि आपकी गद्य रचनाएँ हैं। आपकी रचनाओं की विशेषता यह है कि वह अत्यन्त सरल एवं सुबोध भाषा एवं रोचक शैली में निबद्ध है। २९ फरवरी सन् १९६८ को आप स्वर्गस्थ हुये । ___ आपके छ: शिष्य हुए जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैमुनि श्री सुदर्शनमुनिजी आपका जन्म ई० सन् १९०५ में वसंतपंचमी के दिन सीकर जिलान्तर्गत कावट गाँव में हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती विजयाबाई और पिता का नाम श्री लादूसिंह राजपूत था। आपका जन्म-नाम कुमार सूरज था। वि०सं० १९९१ (अर्थात् ई०सन् १९३४) में वसंतपंचमी के दिन आपने युगप्रधान आचार्य श्री सोहनलालजी के कर-कमलों से अमृतसर में दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री शुक्लचन्द्रजी के शिष्य कहलाये। दीक्षोपरान्त आप कुमार सूरज से मुनि सुदर्शन हो गये। तप और मुनिसेवा आपने संयम जीवन के प्राणतत्त्व थे। आपने अपने संयमजीवन के अन्तिम ३५ वर्ष अम्बाला में व्यतीत किये। ई०सन् १९९७ में ९ मार्च को अपराह्न सवा दो बजे संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री राजेन्द्रमुनिजी आप मुनि श्री शुक्लचन्द्रजी के द्वितीय शिष्य थे। आपका जन्म कश्मीर के उधमपुर जिले के एक गाँव मलान्द में हुआ था। आप मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी के संयम व संसारपक्षीय अग्रज थे। वि०सं० १९९२ में मुनि श्री काशीरामजी के आचार्य पद चादर महोत्सव के अवसर पर होश्यारपुर में आप दीक्षित हुए। आगमों के अध्ययन, चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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