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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मनन आदि में आप सर्वदा संलग्न रहते थे। ज्योतिषशास्त्र का भी आपको अच्छा ज्ञान था। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बंगाल व गुजरात आदि प्रदेश आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। महाराष्ट्र के 'चांदवड़' (महाराष्ट्र) में आप स्वर्गस्थ हुए। मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी
आपका जन्म वि० सं० १९८१ में कश्मीर के छोटे से गाँव भलान्द (रामनगर से आगे) में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री श्यामसुन्दरजी एवं माता का नाम श्रीमती चमेलीदेवी था। आपका जन्म सारस्वत गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वि०सं० १९९४ भाद्र शुक्ला पंचमी (संवत्सरी) को आचार्य श्री काशीरामजी के आचार्य पद चादर महोत्सव के अवसर पर पं० श्री शुक्लचन्दजी द्वारा दीक्षित हुए। पं० श्री दशरथ झा जी से आपने हिन्दी,संस्कृत, प्राकृत,पालि आदि भाषाओं का अध्ययन किया। साथ ही गुरुदेव श्री शुक्लचन्दजी के सानिध्य में आपने आगम एवं जैनेतर दर्शनों का गहन अध्ययन किया। आपने सादड़ी, सोजत, भीनासर, बीकानेर तथा अजमेर में हुए सभी मुनि सम्मेलनों में भाग लिया था।
___आप एकान्तप्रिय मुनि थे। आपका अधिकांश समय जप में व्यतीत होता था। पंजाब और राजस्थान आपके प्रमुख विहार क्षेत्र रहे। आपने अपने जीवन के अन्तिम नौ वर्ष अस्वस्थता के कारण मालरेकोटला (पंजाब) में व्यतीत किये। आपके एक ही शिष्य हुएश्री सुमनमुनिजी । ई०सन् १९८२ के संवत्सरी के आठ दिन पश्चात् आपका महाप्रयाण
हुआ।
ई० सन्
आपके एक शिष्य- श्री सुमनमुनिजी, तीन प्रशिष्य - श्री सुमन्तभद्रमुनिजी, श्री गुणभद्रमुनिजी एवं श्री लाभमुनिजी, एक शिष्यानुशिष्य श्री प्रवीणमुनिजी हैं। आपका चातुर्मास स्थल निम्न रहा हैस्थान
ई०सन् स्थान १९३७ हांसी
१९४५ लाहौर १९३८ जीरा
१९४६ रावलपिंडी १९३९ उदयपुर
१९४७
रावलपिंडी १९४० अमृतसर
१९४८ रायकोट १९४१ स्यालकोट
१९४९ बलाचौर १९४२ स्यालकोट
१९५०
बंगा रायकोट
१९५१ शाहकोट १९४४ नवांशहर
१९५२ सोजतसिटी
१९४३
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