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________________ २२५ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा शिष्य हुये- श्री मायारामजी, श्री जवाहरलालजी और श्री शंभुरामजी। इन तीनों में से श्री मायारामजी और श्री जवाहरलालजी की शिष्य परम्परा चली। श्री मायारामजी के तीसरे शिष्य श्री छोटेलालजी हुये। श्री छोटेलालजी के शिष्य श्री नाथूलालजी हुये। श्री नाथूलालजी के तीन शिष्य हुये- श्री मदनलालजी, श्री मूलचन्दजी और श्री फूलचन्दजी। मुनि श्री मदनलालजी के छ शिष्य हुये- श्री जग्गूमलजी, श्री सुदर्शनमुनिजी, श्री बद्रीप्रसादजी, सेठ श्री प्रकाशचन्दजी, श्री रामप्रसादजी और श्री रामचन्द्रजी। मुनि श्री मदनलालजी के पश्चात् श्री सुदर्शनलालजी ने संघ की बागडोर सम्भाली। मनि श्री सुदर्शनलालजी के पश्चात् वर्तमान में यह संघ दो भागों में विभक्त हो गया है जिसमें एक का नेतृत्व श्री पद्मचंदजी 'शास्त्री' कर रहे हैं तो दूसरे का सेठ प्रकाशचन्दजी। __ इस संघ के वर्तमान संघनायक श्री पद्मचन्दजी 'शास्त्री' हैं। इस समय इस समुदाय में मात्र २८ मुनिराज ही हैं। मुनिराजों के नाम हैं- तपस्वीराज श्री प्रकाशचन्द्रजी. श्री मुकेश मुनिजी, श्री रोहितमुनिजी, श्री सौरभमुनिजी, श्री शान्तिचन्द्रजी, श्री जयमुनिजी, श्री आदीशमुनिजी, श्री विकासमुनिजी, श्री पीयूषमुनिजी, श्री विनयमुनिजी, श्री नरेन्द्रमुनिजी, श्री वैभवमुनिजी, श्री नरेशमुनिजी, श्री सुधीरमुनिजी, श्री अजीतमुनिजी, श्री राजेन्द्रमुनिजी, श्री अचलमुनिजी, श्री पारसमुनिजी, श्री राकेशमुनिजी, श्री सुनीलमुनिजी, श्री अजयमुनिजी, श्री सत्यप्रकाशमुनिजी 'शास्त्री', श्री नवीनमुनिजी, श्रीपालमुनिजी, श्री अरुणमुनिजी, श्री राजेशमुनिजी और श्री मनीषमुनिजी। श्री मदनगच्छ सम्प्रदाय इस समुदाय की पूर्ववर्ती गुरु परम्परा श्री मदन-सुदर्शन समुदाय के अनुरूप ही है। मुनि श्री मदनलालजी के शिष्य सेठ श्री प्रकाशचन्द्रजी से यह समुदाय अस्तित्व में आया। यह समुदाय कब और किस कारण से श्री सुदर्शनलालजी की परम्परा से अलग अस्तित्व में आया, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है। वर्तमान में सेठ श्री प्रकाशचन्द्रजी जो 'मौनी बाबा' के नाम से जाने जाते हैं, इस गच्छ के गच्छाधिपति हैं। वर्तमान में इस गच्छ में केवल ११ मुनिराज हैं, सतियाँजी नहीं हैं। मुनिराजों के नाम हैं- श्री रामप्रसादमुनिजी, श्री सुन्दरमुनिजी, श्री श्रेयांसमुनिजी, श्री शुभममुनिजी, श्री संभवमुनिजी, श्री लालचन्दमुनिजी, श्री शिवमुनिजी, श्री सुशीलमुनिजी, श्री संयतिमुनिजी और श्री समर्थमुनिजी। आचार्य श्री सोहनलालजी की शिष्य परम्परा __ आचार्य श्री सोहनलालजी के बारह प्रमुख शिष्य हुये जिनमें से श्री गैंडेयरायजी और श्री काशीरामजी की शिष्य परम्परा आगे चली। ये दोनों परम्पराई तपस्वी श्री निहालचन्दजीकी शिष्य परम्परा और प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्रजी के शिष्य परम्परा के रूप में आज भी विद्यमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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