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________________ २२४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास स्वर्गवास हरियाणा के दनौदा ग्राम में और मुनि श्री रतिरामजी का स्वर्गवास सुराना खेड़ी ग्राम में हुआ। इन मुनिद्वय का विहार क्षेत्र हरियाणा ही रहा । मुनि श्री केशरीसिंहजी आपका जन्म वि०सं० १९९७ श्रावण शुक्ला सप्तमी को बड़ौदा ग्राम में हुआ। आपके पिता चहलगोत्रीय चौधरी श्री भोलारामजी एवं माता श्रीमती हरदेवी थीं। आप मुनि मायारामजी के बचपन के मित्र थे । मायारामजी के दीक्षित होने के तीन वर्ष बाद ही आपने वि०सं० १९३७ मार्गशीर्ष दशमी को अमृतसर में दीक्षा ग्रहण की। आप मुनि श्री खूबचन्द जी के शिष्य बने। मुनि श्री खूबचन्दजी जब तक जीवित थे तब तक आपने उनकी खूब सेवा की। आप एक उग्र तपस्वी थे। गर्म जल के आधार पर आप ४१ दिन, ५३ दिन, ६१ दिन तक के तप किये थे। आपने २१ वर्ष तक एकान्तर तप किया था। आप तपश्चर्या में इतने सुदृढ़ थे कि ६१ दिन की तपस्या करने पर भी आहार लेने स्वयं श्रावकों के घर थे। जब भी आपका मन होता ५, ८, ११, २१ दिन की तपस्या कर लिया करते थे। आपके जीवन से अनेकों चमत्कारिक घटनायें जुड़ी हैं । वि०सं० १९९० श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन पंजाब के सामाना शहर में आप समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ हुए। आपके एक शिष्य हुए- श्री रामनाथजी । मुनि श्री रामनाथजी I आपका जन्म वि०सं० १९९७ श्रावण कृष्णा पंचमी को बड़ौदा ग्राम में हुआ। आप मुनि श्री मायारामजी को छोटे भाई थे । वि० सं० १९५४ श्रावण कृष्णा द्वादशी को दिल्ली में मुनि श्री केशरीसिंहजी से दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १९९५ आश्विन कृष्णा दशमी को रोहतक के बाबरा मोहल्ला में आपका स्वर्गवास आपके एकमात्र शिष्य हुए - श्री जसराजजी । हुआ। मुनि श्री जसराजजी आपका जन्म जींद (हरियाणा) के बड़ौदा ग्राम के निकटवर्ती ग्राम धोघड़ियाँ में हुआ | आपके पिताजी का नाम चौधरी हरिचन्द्र था। वि० सं० १९५९ आषाढ़ शुक्ला सप्तमी के दिन करनाल अन्तर्गत कैथल में आप दीक्षित हुये । वि० सं० १९९७ में ग्रामपुर खास में आपका स्वर्गवास हुआ। श्री मदन - सुदर्शन गच्छ आचार्य श्री अमरसिंहजी की पंजाब परम्परा में आचार्य श्री रामबख्शजी के तीसरे शिष्य तपस्वी श्री नीलोपतजी हुये। श्री नीलोपतजी श्री हरनामजी हुये। श्री हरनामदासजी के तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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