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________________ २१४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी आपका जन्म रोहतक के राजपुर ग्राम में श्री मुरारीलालजी जैन के यहाँ वि०सं० १९५२ फाल्गुन शुक्ला नवमी के दिन हुआ। जब आप ७ वर्ष के थे तब आपकी माता का देहान्त हो गया। वि०सं० १९७१ भाद्र कृष्णा दशमी को बामनौली (मेरठ) में आप दीक्षित हुए। आगमों का गहन अध्ययन किया। पंजाब के जंडियालागुरु में आप अस्वस्थ हो गये। वि० सं० २०२० (ई० सन् २७ जून १९६३) में आपका स्वर्गवासहो गया। आपके छ: शिष्य हुए- श्री जग्गूमलजी, श्री सुदर्शनजी, तपस्वी श्री बद्रीप्रसादजी, श्री प्रकाशचन्दजी, श्री रामप्रसादजी, श्री रामचन्दजी। मुनि श्री मूलचन्दजी आपका जन्म हरियाणा के देहरा ग्राम में श्री आसारामजी वर्मा के यहाँ वि० सं० १९५६ में हुआ। वि० सं० १९७९ श्रावण मास में रोहतक में २३ वर्ष की अवस्था में आपने मुनि श्री नाथूलालजी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। आप स्वभाव से सदा प्रसन्न रहनेवाले, स्वाध्यायी, विनयी तथा प्रखर प्रवचनकार थे। वि०सं० २०२० आषाढ़ शुक्ला द्वादशी को मूनक (पंजाब) में आपका स्वर्गवास हुआ। मुनि श्री फूलचन्दजी आपका जन्म अलवर के मिलगाणा ग्राम के राजपूत परिवार में वि० सं० १९७० में हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री बेमिसाल सिंह व माता का नाम श्रीमती अछनादेवी था। वि०सं० १९८४ पौष कृष्णा पंचमी को उ०प्र० के बामनौली ग्राम में आपने मुनि श्री नाथूलालजी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। आप ‘स्वामी जी के उपनाम से प्रसिद्ध रहे। मुनि श्री जग्गुमलजी आपका जन्म वि०सं० १९४२ में रोहतक निवासी श्री चिरंजीलाल जैन के यहाँ हुआ। श्रीमती शर्बती देवी आपकी पत्नी का नाम था। आपके तीन पुत्र थे । वि० सं० १९९३ माघ शुक्ला त्रयोदशी को ५१ वर्ष की उम्र में आपने मुनि श्री मदनलालजी के कर-कमलों से संयम धारण किया। वि०सं० २०१६ (ई०सन् १० मई १९५९) दिल्ली के चाँदनी चौक में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्रीसुदर्शनलालजी आपका जन्म वि० सं० १९८० (ई० सन् ८ अप्रैल, १९२३) में रोहतक में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री चन्दरामजी जैन तथा माता का नाम श्रीमती सुन्दरी देवी था। वि०सं० १९९९ (ई०सन् १८ जनवरी, १९४२) में पंजाब प्रान्त के संगरुर में मुनि श्री मदनलालजी के पास आप दीक्षित हुए । आप एक मधुरवक्ता एवं आगमज्ञाता थे। आप स्वर्गस्थ हो चुके हैं। आपके दस शिष्य हुये जिनके नाम हैं- मुनि श्री प्रकाशचन्दजी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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